पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४००

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तीस लाख वर्ष के पुराने जानवरों की ठठरियाँ 1 प्राचीन काल में कुछ जानवर ऐसे होते थे जो आजकल नहीं पाये जाते । डीनोसार जात्यन्तर्गत ट्रेचोडोंट शाखा के रेंगने वाले जीव भी ऐसे ही जानवरों में हैं। इनकी दो ठठरियाँ न्यूयार्क (अमेरिका) के अजायबघर में, हाल ही में, प्रदर्शनी के लिए रक्खी गई हैं। इस जानवर की ठठरियाँ अब तक योरप और अमेरिका में बहुत पाई गई हैं। पर ये दोनो ढांचे ऐसे पूर्ण और जुदी-जुदी हालतों में है कि इनकी परीक्षा करने में बड़ा सुभीता होता है। विद्वानों का अनुमान है कि यह जानवर तीस लाख वर्ष पहले होता था। उस समय डीनोसार जाति की अन्य शाखाओं की अपेक्षा ट्रेचोडोंट शाखा के जानवर बहुत अधिक थे। इन ठठरियों के रंग-ढंग से मालूम होता है कि जिस समय में ये मरे है उस समय दोनों चर रहे थे। उनमें से एक अपने किसी वैरी जानवर के आ जाने से चौंक पड़ा है और उँगलियों के बल खड़ा हो गया है। दूसरे को आने वाली विपद् का ज्ञान नहीं है । वह चुपचाप चरने में मग्न है । इतने प्राचीन काल की घटना के इस अनुमान के ठीक होने में कोई सन्देह नहीं करना चाहिए। क्योंकि जिस समय हम इसके ढाँचे को और तत्कालीन पत्तियों, झाड़ियों, पेड़ों के तनों और फलों के चिह्नों को ध्यानपूर्वक देखते हैं उस समय इस अनुमान के सिवा और कोई अनुमान हो ही नहीं सकता । खड़ी ठठरी के पिछले बायें पैर पर तीन घाव हैं । वे इस जीव के किसी वैरी के किये हुए हैं । उन्हें देख- कर यह अनुमान और भी दृढ़ हो जाता है । जैसा हम पहले कह आये हैं, ट्रेचोडोंट तीस लाख वर्ष पहले विद्यमान था । उस समय ये जानवर योरप और अमेरिका के कई स्थानों में पाये जाते थे । विशेष कर अमेरिका के न्यूजर्सी, मिसीसिपी, अलबामा, बोमिंग, मोटाना, डकोटा आदि स्थानो में । क्योकि यहीं इसकी ठठरियाँ अधिकता से पाई गई है। जब से इम जाति के जानवर का वंश-नाश हुआ तब से आज तक इसकी ठठगियों के ऊपर अटलांटिक महामागर के किनारों पर कई हजार फुट ऊंची चट्टानें जम गई है । भूगर्भ-विद्याविशारदों का कथन है कि इन चट्टानों की इतनी तहें तीस लाख वर्ष से अधिक काल में जम सकती है । इमसे आप इन ठठरियों की प्राचीनता का अनुमान कर सकते हैं। अमेरिका की पश्चिमी रियासतों में पहाड़ियों और घाटियों की बड़ी अधिकता है। इन्हों पहाड़ियो के पास एक अत्यन्त ऊबड़-खाबड़ जगह में यह खड़ी ठठरी, सन् 1904 में, पाई गई थी। जिस आदमी ने इसे पाया था उससे 1906 में न्यूयार्क के अजायबघर के प्रबन्ध-कर्ताओं ने खरीद लिया। दूसरी ठठरी डकोटा रियासत की मोरो नदी के पास मिली थी । इसे अध्यापक