पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तीस लाख वर्ष के पुराने जानवरों की ठठरियां | 397 कोप नाम के एक साहब के आदमियों ने, 1882 में, पाया था। उन्होंने बड़ी मुशकिल से, बहुत कहने-सुनने पर, इसे अजायबघर वालों के हाथ बेचा । ट्रेचोडोंट जानवर की गिनती रेंगने वाले जीवों मे है । उमकी अगली टाँगे बहुत छोटी है । पर पिछली टाँगें और पूंछ खूब लम्बी है । दाँतो की बनावट से मालूम होता है कि यह जानवर मांसभक्षी न था; किन्तु फल, मूल, घाम, पात आदि खाकर जीवन-निर्वाह करता था। इसका मुँह फैला हुआ होता था और बतख की तरह चौड़ी चोंच भी होती थी, जो एक हड्डीदार ग़िलाफ़ से ढकी रहती थी। उसके मुंह में सब मिलाकर दो हजार दाँत होते थे। शरीर के अगले भाग की अपेक्षा पिछला भाग छ: गुना अधिक बड़ा था। क़द और पैर की हड्डियो के आकार से जान पड़ता है कि वह तौल मे बहुत भारी होता था । ठठग्यिो मे अगले पर के सिरे पर चार अंगुलियाँ है । पर अंगूठा बहुत छोटा है । स्थूला- कार पिछली टाँगों में तीन लम्बी-लम्बी उँगलियाँ हैं, जिनके मिरे खुर की तरह जान पड़ते है । जब यह खड़ा होता था तब इसकी ऊंचाई सत्रह फुट होती थी। लम्बी पूंछ से इस जानवर को पानी में चलने में बड़ी मदद मिलती रही होगी। जमीन पर खड़े होने में भी वह बहुत सहायता पहुंचाती होगी। विद्वानो का अनुमान है कि इस जाति के जानवर बड़े बेढब तैरने वाले होते थे। उनकी ठठरियाँ बहुधा ऐमी चट्टानो में पाई गई हैं जो समुद्र के भीतर मग्न थीं । इन चट्टानों में समुद्री घोंघे, सीपी आदि भी पाई गई है। आजकल जितने प्रकार के रेंगने वाले जानवर जीवित हैं उनमें से दक्षिणी अमेरिका के इगवाना नामक जानवर का स्वभाव और चाल-डाल इससे बहुत कुछ मिलती- जुलती है । ये जानवर यहाँ के गलपागोस नामक टापू में झुण्ड के झुण्ड पाये जाते है । जो चीजें समुद्र में पैदा होती है उन्हीं पर ये अपना जीवन-निर्वाह करते हैं । ये जानवर साँप की तरह सारा शरीर और लम्बी पूंछ हिलाकर समुद्र में बड़ी आसानी से तैरते हैं । यह जानवर पानी में घुसकर मांस-भक्षी जन्तुओ से अपनी रक्षा करता होगा। क्योकि सींग आदि रक्षा करने वाला कोई दृढ़ अंग इसके नहीं होता था। इसका चमड़ा उभरे हुए छोटे-छोटे दानों से ढका रहता था। हाल ही में एक ऐसी ठठरी मिली है जिसकी पुंछ की हड्डियो पर चमड़े के चिह्न है। इसकी हड्डियो के साथ तरह-तरह की पत्तियो, फलो और पेड़ों के तनों के चिह्न चट्टानों में अब तक रक्षित हैं । इस जाति के पेड़ वर्तमान समय में गर्म देशों में पाये जाते है, इससे मालूम होता है कि उस समय की अवहेलना बहुत गर्म थी। भूकम्प आदि प्राकृतिक कारणों से अमेरिका महाद्वीप के ऊँचे हो जाने से दल- दलदार नीची भूमि लुप्त हो गई। आबोहवा भी गर्म की जगह ठण्डी हो गई और पहले से से पौधे, पेड़ आदि भी न रहे । इससे कितने ही जलचर जानवरो की भी वही दशा हुई जो जल से बाहर निकली हुई मछली की होती है । इस जाति का जानवर जो सदा के लिए लुप्त हो गया, इसका मुख्य कारण यही है । [अप्रैल, 1909 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'प्राचीन चिह्न' पुस्तक में संकलित ।)