पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४०५

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पूर्वी अफ़रीका की कुछ जंगली जातियां /401 दानों की माला, कई लढ़ी करके, पहनती हैं । इसी को वे बहुमूल्य गहना समझती है । इन असभ्य जंगली लोगों में एक विलक्षण गुण है। वह गुण सभ्यो के सीखने लायक है। ये लोग अपनी-अपनी जाति वालों से अत्यंत स्नेह रखते हैं । इनमें अपूर्व एका होता है। यदि दो-चार के बीच में एक ही चिड़िया या एक ही रोटी हो, तो उसे सब बराबर-बराबर बाँटकर खाते हैं। एक पर विपत्ति आने से सव जी-जान से उसकी सहायता करते हैं। परंतु ये बातें अपनी ही अपनी जाति में पाई जाती है । परस्पर एक दूसरी जाति से ये लोग घोर शत्रुता रखते हैं और उनमें बहुधा मार-काट हुआ करती है । धकांबे सुहेलियों के जानी दुश्मन हैं और मसाई धकांबे जाति वालों के। [पूर्वी अफरीका की दो-चार बाते' शीर्षक से जुलाई, 1904 को 'सरस्वती' मे प्रकाशित । 'वैचित्र्य-चित्रण' में संकलित ।]