पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४०८

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404 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली 1 - जंगली अपने होंठों को चूस-चूसकर ऐसा अजीब शब्द कर रहे थे कि देखते डर मालूम होता था । सच मानिए, ऐसा दृश्य मैंने कभी पहले न देखा था। कुछ देर बातचीत होने के बाद यांगसिल ने कहा-सब ठीक है । कुछ डर नहीं । सरदार साहब कहते हैं कि हम लोग उनके साथ उनके गाँव चलें। वहीं हमारी खातिर-तवाजो होगी और सौदा सुलुफ भी वहीं होगा। यांगसिल ने सरदार से कहा कि मैं एक बादशाह का बेटा हूँ और सरदार की प्रभुता, शक्ति और बहादुरी का हाल सुनकर उसकी बीवियों के लिए उम्दा-उम्दा चीजें नज़र करने लाया हूँ। यह सुनकर सरदार साहब बहुत खुश हुए । हम लोगों ने उसके गाँव की ओर प्रस्थान किया। प्रत्येक जंगली के हाथों में भाला और धनुर्बाण था । तीरों से भरा हुआ चमड़े का तरकम कंधे से लटकता था । तीर जहर से बुझे हुए थे । दो घंटे बाद हम लोग उनके गांव के पास पहुँचे और किनारे पर कदम रक्खा। उनकी औरतो को देखकर मैं काँप उठा। वे मर्दो से भी ज़ियादा घृणोत्पादक थीं। हम लोगों को सैकड़ों जंगली आदमियों ने घेर लिया। औरत, मर्द, लड़के सब एक जगह इकट्ठे हो गये । सब नंगे थे । बहुत देर तक बातचीत के बाद एक पेड़ के नीचे हम लोग जमा हुए। मुझे जो कुछ कहना होता, वह अंटोनिओ से कहता । अंटोनिओ यांगसिल से, और यांगमिल सरदार से । करते क्या, वात करने का और कोई साधन ही न था। एक दूसरे की बात ही न समझता था। मैंने कहा, मैं तीन आदमियों को अपने माथ ले जाना चाहता हूँ । वे.अच्छी तरह रक्खे जायँगे । किसी बात की तकलीफ़ न होने पावेगी। वर्ष-डेढ़ वर्ष बाद वे फिर यहीं लाकर छोड़ दिए जायेंगे। सरदार के आदमियों ने हमें रोटी और फल खिलाए । उसने कहा, आज रात को यहीं रहिए और हम लोगो का नाच देखिए । यह बात हमें मंजूर न थी । डर लगा कि रात को कही ये लोग हमला न करें । मैंने कहा, तुम लोग हमारे जहाज के पास आओ। वहीं नाच दिखाना, वही पर मै तुम्हें वे चीजें भी नजर करूँगा, जो बादशाह ने भेजी है । सरदार ने यह बात मान ली। हमारे साथ ही कप्तान ने, इसी बीच में, खूब सौदा किया। बहुत-सी जगली चीजें उन लोगों से बदले में लीं। हम सब अपनी नावों पर सवार होकर जहाज़ की तरफ़ चले। आधी दूर तक जंगली मरदार, अपनी चार नावों के साथ, हमें पहुँचाने आया। उन्हें डराने के लिए हम लोगों ने अपनी बंदूकें छोड़ी। 'धड़ाम', 'धड़ाम' आवाजें हुई। जंगली लोगो पर इसका बड़ा असर हुआ। वे चकित होकर इधर-उधर देखने लगे। कुछ देर नाव चलाना भी वे भूल गये । जब वे लोग लौटने लगे, तब मैंने सरदार से कहा कि तीन छोटे सरदार मेरे माथ जहाज तक चलें, नो अच्छा हो और जब तक सरदार साहब नाच दिखाने आवें, तब तक वे वही रहें। मैंने समझा था कि इस बात को वह मंजूर न करेगा। पर उसने मान लिया। यह देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। जहाज़ पर पहुँचकर हमने उन तीन लम्बे होंठ वालो को खाना खिलाया और अच्छी तरह रक्या । मैंने उनसे अपने साथ चलने को कहा । उन्होने आपस तक सलाह की और चलने पर राजी हो गए । यह सुनकर मैं बहुत खुश हुआ । जहाज कुछ देर