पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४११

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लंबे होंठ वाले जंगली आदमी / 407 का सिर्फ यही एक उपाय है कि जिन जंगली लोगों को हमने कैद कर लिया है, उन्हें छोड़ दें। इससे ये लोग शांत हो जायेंगे । अन्यथा वरावर पीछा करते रहेंगे। यह बात सबको पसंद आई। एक कैदी को हमने जहाज़ पर खड़ा किया। हमारे कहने पर उसने जोर से आवाज लगाई और अपने मरदार से कहा कि बाणो की मार बंद की जाय और जहाज पर हमला बद हो, तो हम लोग छोड़ दिए जायेंगे । यह सुनकर लवे होठ वाले जंगलियों ने आपम मे कुछ देर तक सलाह-मशविरा किया। उन्होंने हमारी शर्त मान ली। इस पर हमने कहा कि तुम लोग अपने हथियार किनारे पर रख आओ। तब तक लोग तुम पर वार न करेंगे। यह भी उन्होंने मजूर कर लिया। एक घटे के भीतर ही वे अपने अस्त्र-शस्त्र किनारे पर रख आए और खाली हाथ अपनी-अपनी नावा पर आ गए। तब हमने उनके कैदियों को छोड़ दिया और तेजी के साथ घर की तरफ जहाज़ चलाया। इस लड़ाई में हमारे 3 आदमी जान से मारे गए और 11 घायल हुए । उन जगली असभ्यों का नुक़सान इससे बहुत अधिक हुआ होगा । यांगमिल के गाँव पहुँचकर हम लोग वहाँ दो-तीन दिन ठहरे । फिर वहाँ से ग्वाना हुए और 25 दिन बाद, जहाँ से जहाज़ पर निकले थे, वहाँ पहुँचे । हम लोग वहुन थक गए थे । बीमार भी हो गए थे । मुसीबते झेलने से हम लोगो का बदन आधा भी न रह गया था । खैर, ग़नीमत हुई, जो ज़िदा लोट तो आए । [अप्रैल, 1909 की 'सरस्वती' मे प्रकाशित । 'वैचित्र्य-चित्रण' पुस्तक मे संकलित।]