पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४२३

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प्रशान्त महासागर के टापुओं की कुछ असभ्य जातियाँ प्रशान्त महासागर में छोटे-बड़े सैकडो टाप हैं । वे सब ओशनियो के नाम से प्रसिद्ध हैं। उनमें से टोंगा, ताहिती, समोआ और हवाई आदि टापुओं के समूह का नाम पालीनेशिया है; और फ़ीज़ी, न्यू कैलेडोनिया, सालोमन आदि के समूह का नाम मेलानेशिया । इन टापुओं के पहले समूह में जो असभ्य आदमी रहते हैं, वे पालीनेशियन कहलाते हैं और जो दूसरे में रहते हैं, वे मेलीनेशियन । यही लोग यहाँ के मूल निवासी हैं । पहले ये बेहद अमभ्य थे । पर जब से योग्प और अमेरिका के सभ्य सज्जन इन टापुओ में पधारे, तब से इनकी असभ्यता कम होने लगी । अब तो वह और भी दिन-दिन कम होती जाती है। परंतु इसके साथ ही उनका विनाश-साधन भी होता जाता है। पश्चिमी सभ्यता की बदौलत इन लोगों में नए-नए व्यसनों का प्रादुर्भाव हो गया है, जो इनकी संख्या बराबर कम करता जा रहा है । जो जाति इस मनुष्य-गणना में, कल्पना कीजिए, एक हजार है, वह, दस वर्ष बाद दूसरी मनुष्य-गणना में पाँच ही सौ रह जायगी । यह दशा है ! इनकी संख्या की कमी के और भी कई कारण हैं। पालीनेशिया के टापू पहले बिलकुल उजाड़ थे। वहाँ के मूल निवासी और ही कही रहते थे । वे किसी उत्तर-पश्चिम के देश या प्रांत से वहाँ गए जान पड़ते हैं । यह बात उनके रूप-रंग और कद से सूचित होती है। यहाँ वाले कद में, कोई-कोई छ: फुट तक ऊँचे होते हैं । बाल काले और सीधे होते हैं । चमड़े का रंग कुछ-कुछ भूरापन लिए होता है। योरपवालो के संसर्ग से ये लोग अब काहिल हो गए है और दुराचरण की लत भी इनमें पड़ गई है। अन्यथा ये बड़े परिश्रमी और, कुछ को छोड़कर, मदाचरणशील थे। योरपवालों के पालीनेशिया में पहुंचने पहले वहां निवासी खेती करना अच्छी तरह जानते थे । ये लोग रोटी, तरकारी ही अधिक खाते थे, मांस-मछली कम । नारियल यहाँ अधिकता से होता था। ये लोग नाव बनाना भी जानते थे। तैरने में तो ये बड़े ही निपुण थे। शहतूत की जाति का एक पेड़ वहाँ होता है । उसकी रस्सी ये लोग ऐसी अच्छी और मजबूत बनाते थे, और अब भी ऐसी बनाते हैं कि उसे देखकर आश्चर्य होता है। एक पेड़ की छाल कूटकर उसके बारीक तंतुओं से ये लोग एक प्रकार का मोटा कपड़ा भी बनाते थे। सुर्बाण और भाले इनके हथियार थे। फावड़ा, कुदाली आदि ये लोग पत्थर के बनाते थे। इनके कुछ औजार सीपी के भी होते थे। पालीनेशिया के निवासियों में अधिकांश अब क्रिश्चियन हो गए हैं । परंतु पहले वे विशेष करके सूर्य और चंद्रमा के उपासक थे। उन्हीं की वे पूजा करते थे; उन्हीं की