पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४२५

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- प्रशान्त महासागर के टापुओं की कुछ असभ्य जातियाँ | 421 निवासी पहले जाँघों तक गुदना गुदाते थे । उसमें वे पीले रंग की कोई चीज लगाते थे। इससे उनका यह अंग उम्र भर पीला बना रहता था और देखने में बडा ही विलक्षण मालूम होता था। ये लोग स्त्री और पुरुष दोनों कमर पर मोटे कपड़े या चटाई का एक छोटा-सा टुकड़ा-मात्र लपेटने थे। बाक़ी मारा अंग नगा रहता था। मकोच और लज्जा का कही इनमे नाम न था। तमण लड़कियाँ पिता और गुरुजनों के मामने इम वेश में आते जरा भी न सकुचाती थी। स्त्रियाँ और पुरुष दोनो एक ही तरह के गहने पहनते थे । ये लोग माला या हार पहनने के बड़े शौकीन थे। इनके हार विशेष करके चिड़ियों की टॉगो की हड्डियाँ और शार्क नामक मछली के दाँतो के होते थे । मीपियाँ और जंगली फलो की गुठलियों के भी हार ये लोग बनाकर पहनते थे। चिड़ियो के बाज और चोचे भी कभी-कभी ये अपने हारों में पिगे देते थे। कछा की हड्डियो की अंगठियाँ और बाजूबंद भी इन्हें बडे प्रिय थे । प्रत्येक कान में ये लोग दो-दो करके उनमें हाथीदाँत या मामूली हड्डियो की तीन-तीन इच व्यास वाली बालियां पहनना बहुत पसंद करते थे। यद्यपि विलकुल ही अमभ्य थे, तथापि अपने बदन को ये होगा माफ़ रखते थे। इमलिये में दो-दो, तीन-तीन दफे तालाबा मे नहाते थे। यदि ममुद्र मे नहाने का मौका आता, तो तालाब का पानी मिलते ही उस अपने ऊपर डालकर बदन दुबाग धो डालते थे। ममृद्र के पानी मे चमड़ा फट जाता है। इस तकलीफ से बचने के लिये ये लोग ऐमा करते थे। पालीनेशियन और मेलीनेशियन लोग बाल संवारने के पीछे बैतन्ह पागल रहते है। मर्द-औरत मभी अपने बाल रंगने, संवारने और उन्हें सीपियो और पक्षियो के पंखों तथा फूल-पनियो से आभूषित करने मे घटो खर्च करते है। गत को जब ये लोग मोते है, नव सिर के नीचे काठ की एक विचित्र तकिया रखते है। वह इस तरह की होती है कि वालो का जूडा ज्यो का त्यो बना रहता है-बाल बिबग्ने नहीं पाते। इस तकिए के कारण इन लोगो को सोते समय बहुत तकलीफ़ मिलती है, परंतु उसे ये खुशी से मह लेते हैं । तकलीफ़ चाहे जितनी हो, बाल न बिखरने पावें ! इन द्वीप-समूहो के निवासी एक प्रकार के सोमयाजी किवा सोमपायी है। इनके सोम-रस का नाम है कावा । किसी किसी टापू वाले इसे आवा भी कहते हैं । सामोआ-टापू के निवासी बड़े-बड़े उत्सवो और त्योहारों पर कावा जरूर पीते है । यह एक पौधे की जड़ से बनाया जाता है । निर्दिष्ट समय पर सैकडो आदमी इकट्ठे होते हैं। अपने-अपने पद के अनुसार वे क़ता में आगे-पीछे बिठाए जाते है। फिर सबको कावा की जड़े दी जाती हैं । उन्हे दाँतों में चाबकर ये लोग खूब बारीक करते है । तब वह सारी-की-सारी लुगदी पनों पर रखी जाती है। इसके बाद वह एक बड़े बरतन में रखकर उबाली और तदनंतर छानी जाती है। जब तक ये सब तैयारियाँ होती है, तब तक लोग ज़ोर-ज़ोर से मंत्र-पाठ और गान करते है। कावा तैयार हो जाने पर स्त्रियाँ, लड़कियाँ, लड़के तक, सब लोग, नारियल के पियालों में उसे भराते हैं । एक सबसे अधिक सुदरी लड़की प्याले में कावा लेकर समागत सज्जनों में सर्वाधिक श्रेष्ठ पुरुष के सामने ले जाती है । वह उस कावा को एक ही सांस में पी जाता है। उसके पी चुकने पर और लोग पीते हैं। किसी.