पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४३१

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प्राचीन मेक्सिको में नरमेध-यज्ञ /427 दे दी जाती थी, जो उसे युद्ध से पकड़ लाता था। वह उसे बड़ी प्रसन्नता से अपने घर उठा लाता और बड़े यत्न से पकाता। तब उसके बंधु-बांधव और मित्र एकत्र होते। सव लोग खुशी मनाते, और अंत में वे सब मिल कर उस नर-मांस को बड़ी प्रसन्नता से खातं । कुछ वीर पुरुष अपने ही मन से अपने को बलिदान के लिये अर्पण कर देते थे। इन लोगों की खोपड़ियों की माला मेक्सिको का बादशाह बड़े प्रेम से पहनकर दरवार या त्योहार के दिन तख्त पर बैठता था। [जनवरी, 1913 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'अद्भुत आलाप' पुस्तक में संकलित।