पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४३८

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434/महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली उनका प्रवेश ही इस देश में नहीं हुआ। इन लोगों के बनाये हुए पुलों ऊपर से जानवर नही जा सकते । परन्तु बोझ, चाहे कितना ही वज़नी हो, आराम से और बिला किसी ख़तरे के, लोग उस पर से ले जाते हैं । मिशमियो के देश मे बाँस की बड़ी अधिकता है । बेत भी खूब होता है । माग- पात और ओषधियाँ भी वहाँ बहुत पैदा होती है । टीटा नाम की एक ओषधि वहां होती है । वह बड़े काम आती है । उसका चालान आसाम के सदिया प्रान्त को बहुत होता है। खनिज पदार्थों का वहाँ अभी तक कहीं पता नहीं । मिशमी लोग क़द में ठिंगने होते हैं। इनकी ऊँचाई पाँच फुट चार इंच से शायद ही कभी अधिक होती होगी । पर वे होते बड़े मजबूत हैं । बिला थकावट के वे लोग दूर दूर का सफर कर सकते है । बोझ वे खूब उठाते हैं । इस काम में स्त्रियाँ और पुरुष दोनो ही बड़े कुशल होते है । लड़कपन ही से वे लोग भार-वहन की आदत डालते है। स्त्रियों को वहाँ 'गंडु' नाम का गेग तो अवश्य होता है, पर और रोगो का वहाँ प्रायः अभाव ही मा समझिए । ये लोग बहुत कम बीमार पड़ते हैं । मिशमी लोग शौचशुद्धता को आचरणीय धर्म नही समझते । इस विषय में उन्हें और पशुओ को सदृश ही समझना चाहिए । अपने घर को तो ये लोग थोड़ा बहुत साफ़ जरूर रखते हैं; पर शरीर की स्वच्छता की ये जरा भी परवा नही करते । चुनाँचे ये कभी नहाते धोते नहीं । इस देश में बारिश खुब होती है । इमसे इन लोगों को पानी बरमते समय भी बहुधा बाहर निकलना पड़ता है। इम कारण इनके कपड़ों का मैल, पानी पड़ने से, चाहे भले ही कुछ छूट जाय, पर शरीर को स्वच्छ करने का कष्ट ये कभी न उठावेंगे। इनमें से कुछ लोग तो यहां तक ममझते हैं कि नहाने से तन्दुरुस्ती खराब हो जाती है। अफ़ीम का प्रचार अभी तक इस देश में नहीं हुआ। पर बोतल-वासिनी देवी ने अपने पादपद्म यहाँ भी पधग दिये हैं । अतएव शराबनोशी का रवाज चल पड़ा है। पर अभी उसका आधिक्य नहीं हुआ। यहाँ तम्बाकू पीने का आधिक्य अवश्य है। लड़के- बच्चे तक यहाँ तम्बाकू पीते हैं । जिसे देखिए वही थैली में तम्बाकू और हाथ में बॉम की एक नली लिये रहता है। छ: छः, मात सात वर्ष की लड़कियाँ तक, बड़ों बूढ़ों के सामने, घड़ी घड़ी बाद, दम लगाया करती है । तम्बाकू पीने की नलियाँ धातु की भी बनती हैं। परन्तु आम तौर पर लकड़ी ही की बनी हुई नलियाँ काम में लाई जाती हैं। वे किमी वृक्ष की जड़ की बनाई जाती हैं। मिशमी लोग शान्तिप्रिय होते हैं । लड़ना-झगड़ना इन्हें पसन्द नहीं । अपने को ये बहुत रूपवान् समझते हैं । अच्छे कपड़े पहनने के शौकीन होते हैं । रुई के सूत से ये लोग अपने कपड़े अपने ही देश में तैयार कर लेते हैं। पर ऊनी कपड़ों के लिए इन्हें निब्बत का मुख देखना पड़ता है; वे वहीं से आते हैं । कारण यह है कि इनके देश में भेड़-बकरियां नहीं होती । मनकों की मालायें ये खूब पहनते हैं। इनकी वेशभूषा और सज-धज देखने लायक होती है । दाहने हाथ में माला, वायें कंधे पर दांव और यदि सौभाग्य से मिल गई तो दाहने कंधे से तलवार लटका करती है । दाहने कंधे से वह थैली भी लटकती है जिसमें ये लोग पीने की तम्बाकू और खाने की एक आध चीज़ सदा रक्खे रहते हैं ।