पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४५

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सुमात्रा और जावा आदि द्वीपों में प्राचीन हिन्दू सभ्यता / 41 उसने पुत्रवत् किया-'चोरी' का शब्द केवल कोण में रह गया- वातोऽपि नाथसयदंशुकानि कालम्बयेदाहरणाय हम्तम् । उस समय सुमात्रा के पश्चिमी समुद्र-तटवर्ती प्रान्त मे कुछ अरव बम गये थे। उनके मरदार ने अशर्फियों से भरी हुई एक थैली कलिङ्ग-राज्य की सीमा के भीतर, एक सड़क पर, रखवा दी कि देखें उसे कोई उठा ले जाता है या नहीं। तीन वर्ष तक वह वहीं पड़ी रही; किसी ने उसे छुवा तक नहीं । इमके बाद एक दिन कलिङ्ग के युवराज के पैर से वह थैली टकरा गई। इस पर रानी मीमा मस्त नागज हुई। पहले तो उसने युवराज को वध-दण्ड दिये जाने की आज्ञा दे दी; पर लोगों के बहुत कुछ समझाने पर उसने युवराज के उम पैर का केवल अंगठा कटवाकर उसे छोड़ दिया। इस घटना का भी उल्लेख चीनियों के इतिहास में है। मध्य जावा में एक जगह जंगाल है। वहाँ एक शिलालेख, शक 654 (732 ईमवी) का मिला है। यह पहला ही शिलालेख है, जिसमे मन्-संवत् दिया हुआ है । इमकी भी भाषा संस्कृत और लिपि वही पल्लव-ग्रन्थ है। इसमें एक शिवालय के पुनर्निर्माण का उल्लेख है। दक्षिणी भारत में अगस्त्य मुनि के एक आश्रम का नाम कुञ्जर-कुञ्ज था । जावा का वह शिवालय इमी कुञ्जर-कुञ्ज के शिवालय के ढंग का बनाया गया था। इसमें मध्य जावा के दो नरेशों -पन्नाह वौर सञ्जय-का जिक्र है और लिखा है कि उन्होंने इस भ-मण्डल पर, चिरकाल तक, मनु के सदृश न्यायपूर्वक राज्य किया । सञ्जय वडा ही बलशाली राजा हुआ । उमने सुभात्रा, बाली और मलय प्रायद्वीप के समस्त नरेशो को पराजय करके उन्हें अपने अधीन कर लिया था। शक 682 (मन् 760 ईमवी) में उत्कीर्ण एक और शिलालेख, पूर्वी जावा में, प्राप्त हुआ है। उममे अगस्त्य ऋपि की एक प्रस्तर-भूर्ति की स्थाTT का उल्लेख है। उमकी स्थापना गजयान नामक राजा ने की थी। यह राजा ब्राह्मणो का पुरस्कर्ता और कुम्भयोनि अगस्त्य का उपासक था। यवद्वीप के निवासी अगस्त्य के परम उपासक थे। 863 ईसवी के शिलालेख में भी अगस्त्य का नाम आया है । इस लेख की भाषा 'कवी' है। संस्कृत और जावा की तत्कालीन प्रान्तिक भाषा के मिश्रा ने बनी हुई भाषा का नाम 'कवी' है। इस शिलालेख मे भद्रलोक नाम के एक मन्दिर का उल्लेख है। उसे स्वयं अगस्त्य ने बनवाया था । उममे अगस्त्य की सन्तति के विषय में आशीर्वाद है। इससे सूचित होता है कि अगस्त्य मुनि दक्षिणी भारत से जावा मे बसे थे । इस बीच में राजनैतिक उलट-फेर बहुत कुछ हो जाने के कारण मध्य जाना, शैव-सम्प्रदाय के नरेशो के हाथ से निकलकर, सुमात्रा के महायान-सम्प्रदाय वाले बौद्धों के अधिकार में चला गया। यह घटना ईसा के आठवें शतक के मध्य में हुई जान पड़ती है। चीन के ऐतिहासिक ग्रन्थों में लिखा है कि सुमात्रा में, ईसा के पांचवें शतक में, हिन्दुओं का राज्य था। वहां के शैलेन्द्र-वंशी नरेशों ने अपने राज्य का विस्तार धीरे- एक और