पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

यूरोप के इतिहास से सीखने योग्य बातें 449 समय फ़ारिस के राजा जरजोस ने ग्रीस पर चढ़ाई की। उसके साथ 1200 जहाजी वेड़े और 3000 माल ढोने वाले जहाज थे। सैनिकों की संख्या इतनी अधिक थी कि उनकी गिनती नहीं की जा सकी। वे लोग बराबर मात दिन और सात रात पुल पर से पार होते रहे थे । जरजीस के सेनासमुद्र का यह भयानक प्रवाह यदि ठीक समय पर गंका न जाता तो ग्रीस जैसे छोटे से देश का आज दुनिया में कहीं पता भी न लगता । यद्यपि हमेशा आथेन्स और स्मार्टा नामक ग्रीस के दो धुरन्धर राज्यों में आपस का कलह जारी था, तथापि अपने देश रर यह संकट आया देखकर वे एकत्र हो गये। आथेन्स के राज- कर्ताओं और सरदारों ने स्पार्टा के गजा लियोनिडाम को अपनी सम्मिलित सेना का मुखिया बनाने में असीम देश-भक्ति का परिचय दिया। लियोनिडाम और उसके माथियो ने अपने देश की रक्षा के लिए कैसे प्राण त्याग किया, आथेन्म के थेमिस्टाक्लिम और अग्स्टिायडिस जैसे राजनीतिनिपुण पुरुषों ने स्मार्टा के सुप्रसिद्ध एडमिरल युरिपायडिम से शत्रु के जहाजों का कैसे नाश किया और अन्त में जरजीस हार खाकर अपने देश को कैसे लौट गया-इन सब बातो का वर्णन करने के लिए यहाँ स्थान नही । लिखने का तात्पर्य यही है कि उस समय के शूर, राजनीतिनिपुण और स्वदेशभक्त लोगो ने परस्पर कलह को भुलाकर अपने देश की रक्षा कर ली परमेश्वर की कृपा से हमारे देश में प्रबल पराक्रमी अंगरेज जाति की सत्ता है। इस कारण किसी प्रकार के बाहरी संकट का भय नहीं। तथापि हमारे यहाँ आन्तरिक विघ्नों की कमी नहीं है। यदि भिन्न-भिन्न प्रान्तों में रहने वाले, भिन्न भाषा भापी, भिन्न धर्म-रीति और रिवाज का अनुसरण करने वाले हमारे हिन्दुस्तानी भाई ग्रीम देश के इतिहास से जागृत होकर आन्तरिक विघ्नों को हटाने का यत्न करें-चारसरिक भेद- भाव का त्याग करके स्वदेशाभिमानपूर्वक एकता की वृद्धि करने का यत्न करें-नो हमारी बहुत कुछ उन्नति हो सकती है। की सहायता रोम अब रोम के इतिहास की बात सुनिए । इटली देश के रोम नामक शहर में रहने वालो को रोमन कहने थे। इन लोगों ने अपनी शूरता, धीरज, पराक्रम और स्वदेशभक्ति से अपने शहर में प्रजासत्ताक राज्य स्थापित किया। धीरे धीरे इस छोटे से प्रजासत्ताक राज्य का विस्तार इतना बढ़ा कि उसने इटली देश की अन्य मारी रियासतों को जीत लिया और प्रायः सारे यूरोप में, अफ़रीका के उत्तर तथा एशिया के पश्चिम भाग में भी, अपनी सत्ता स्थापित की। धर्म, न्याय और राजप्रबन्ध के विषय में रोमन लोग यूरोपियन राष्ट्रों के मार्गदर्शक तथा शिक्षक कहे जाते हैं । उनके अभ्युदय तथा पतन का इतिहास केवल हमारे लिए ही नहीं, किन्तु सारी मानव-जाति के लिए शिक्षा से भरा हुआ है। जिन अनेक कारणों से उनके प्रजासत्ताक राज्य की उन्नति हुई उनमें से सिर्फ दो बातो का उल्लेख यहाँ किया जायगा । पहली बात-रोमन लोगों में 'श्रेष्ठ' और 'कनिष्ठ' ऐसे दो भेद बहुत प्राचीन