पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४५९

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यूरोप के इतिहास से सीखने योग्य बातें / 455 अपने देश में धर्म-परिवर्तन करके ही चुपचाप न बैठ रहे, किन्तु राज्यप्रबन्ध के विषय में भी ममुचित सुधार करने का यत करने लगे। इंगलैड का राज्यप्रबन्ध प्रजा के प्रति- निधियों के एक मण्डल द्वारा किया जाता है, जिसको पारलियामेंट कहते हैं । इस पारलिया- मेंट को इंगलैंड के लहरी, अत्याचारी, अन्यायी और अपनी सना का दुरूपयोग करने वाले अनेक गजाओ का नियमन करना पड़ा और प्रजा को पीड़ित करने वाले बड़े बड़े मरदारो का दमन करना पड़ा। उसने राजाओ की अनियंत्रित सत्ता तथा सरदारो की हानिकारक शक्ति के विरुद्ध कई मदियो तक झगडा किया । तब कही उमे कामयाबी हुई। प्रजा के हकों की रक्षा करने में इंगलैंड की पारलियामेंट सभा का इतिहास अत्यन्त चित्ताकर्षक और शिक्षादायक है । राजा प्रथम चार्ल्स की अमलदारी मे स्वार्थी मरदारो ने अनेक प्रकार का अत्याचार किया। राजा भी फ़िजूलखर्ची में बढ़ा चढ़ा था। अतएव वह सदा ही द्रव्य की मांग किया करना था। उसका खर्च पूग करने के लिए अधिकारियों ने प्रजा पर नये नये कर लादना शुरू किया। अनेक अनुचित कारणो से जब राज्यप्रबन्ध का ख़र्च बहुत बढ़ गया तब गजा के पक्ष वालो ने नारलियामेंट में कहा कि ऐसे कानून बनाओ जिसमे आमदनी बढ़े पारलियामंट ने उत्तर दिया कि इस समय इगलैड की सारी प्रजा अन्यायी तथा अत्या- चारी राज्य पद्धति से पीड़ित हो रही है, मब लोग अपने स्वत्वो-हको-की रक्षा के लिए पुकार रहे है. जब तक प्रजा की पुकार पर न्याय की दृष्टि से विचार न किया जायगा और जब तक अधिकारियो के अत्याचारो से प्रजा के स्वाभाविक हको की रक्षा 7 की जायगी तब तक हम नये कर लगाने का कोई कानून न बना सकेंगे। इस पर राजा ने आमदनी बढ़ाने के लिए, अपनी राजसता क बल पर, स्वय ही भांति भाँति के उपाय आम्भ कर दिये । फल यह हुआ कि राजा और उसके पक्ष में समर्थन करने वाले स्वार्थी मरदागे तथा अधिकारियो के अन्याय से सब लोगों के मन और भी क्षुब्ध हो उठे। पागलयामेट ने राजा और उसके स्वार्थी अधिकारियो को बहुतेगा समझाया और प्रजा के हित तथा कल्याण की ओर ध्यान देने को कहा । जब इससे कुछ लाभ न हुआ तव पारलियामेंट में कुछ सभासदों ने राजशासन की अयोग्यता पर खुल्लमखुल्ला टीका आरम्भ कर दी। राजा और उसके अधिकारियो मे प्रजा के प्रतिनिधियो के तीक्ष्ण वाग्बाण सहने की शक्ति न थी। "हमारे शासन हमारी सत्ता और हमारे अधिकार के विरुद्ध यह सभा टीका करती है ! यह सचमुच हमारा अपमान है" ! ऐसा सोच कर राजा को बहुत क्रोध आया। जिन जिन प्रतिनिधियों ने राजसत्ता के विरुद्ध आलोचना की थी उन सबको उमने जबरदस्ती कैद कर लिया। परिणाम यह हुआ कि पारलियामेंट के प्राय. सभी सभासद, इंगलैंड के अनेक विद्वान राजनीतिनिपुण और विचारशील जन तथा साधारण लोग भी राजा की अनियन्त्रित सत्ता से असन्तुष्ट हो गये । तुरन्त हो दो परस्पर विरोधी और बलवान् पक्ष हो गरे-एक राजपक्ष, दूसरा प्रजापक्ष । अब उक्त दोनों पक्षों में भयानक विरोध बढ़ने लगा । राजा चार्ल्स अपनी ही इच्छा के अनुसार स्वतन्त्रतापूर्वक राज्य का प्रबन्ध करने लगा । इस कार्य में स्ट्रेफोर्ड नाम का एक सरदार, जो कि स्वयं ही अन्यायी और अत्याचारी था, राजा का बड़ा सहायक