पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

456 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली था। वह आयरलैंड का गवर्नर नियत किया गया । वहाँ उसने राजा की सहायता के लिए प्रजा पर जबरदस्ती करके एक बहुत बड़ी सेना तैयार करने का यत्न किया । परन्तु इस कार्य में वह सफल न हुआ और राजा तथा उसके अन्यायी सहायकों के अत्याचारपूर्ण शासन के अन्त होने का समय समीप आ पहुंचा। लगभग ग्यारह वर्ष तक पारलियामेंट की सहायता के बिना, स्वतन्त्रतापूर्वक शासन करने के बाद चार्ल्स को विवश होकर सन् 1640 ई० में, पारलियामेंट सभा का फिर आश्रय लेना पड़ा। अँगरेज़ी इतिहास में इस पारलियामेंट को लम्बी पारलियामेंट (Long Parliament) कहते हैं, क्योंकि यह बहुत वर्षों तक-लगभग 20 वर्ष तक बनी रही और उसने अनेक महत्त्व के काम किये । सबसे पहले इस पारलियामेंट में उन सब लोगों को कारागार से मुक्त कर दिया जिनको राजा ने अन्यायपूर्वक मज़ा दी थी। इसके बाद राजा की अत्याचारपूर्ण और अनियन्त्रित सत्ता की जिन जिन लोगों ने सहायता की थी उन पर देशद्रोह का दोष आरोपित किया गया-उनकी जांच की गई और अपराधियों को कड़ी मजायें दी गई। राजा के मुख्य सहायक लार्ड और स्टैफोर्ड नाम के दो सरदार फांसी पर लटका दिये गये; और राजा की आज्ञा से स्थापित हुई तथा प्रजा को पीड़ित करने वाली अदालतें बन्द कर दी गई । स्ट्रेफोर्ड के अभियोग के सम्बन्ध में एक इतिहासकार लिखता है-"His trial before the Lords was in effect a trial of the King's government."' 379fat पारलियामेंट की उक्त काररवाइयों से यह बात सिद्ध हो गई कि राजा का शामन न्याय के विरुद्ध तथा प्रजा के लिए दुःखदायी था । पारलियामेंट अर्थात् प्रजा के पक्ष का जोर बढ़ता देख राजा अपने मन में जलने लगा; पर प्रकट रूप से कुछ करने के लिए उसे माहस न हुआ। इस कारण कुछ समय तक पारलियामेंट ही की सम्मति से राज्यशासन करने का उसने निश्चय किया । परन्तु जैसे अत्याचारी, अन्यायी और दुराग्रही लोग अपने हित- कर्ताओं के उपदेश के अनुमार बर्ताव करने में अपनी मानहानि समझते हैं, उसी तरह राजा भी पारलियामेंट की सम्मति से चलने में अपने को अपमानित समझने लगा । फल यह हुआ कि थोड़े ही दिनों बाद उमने पारलियामेंट से फिर झगड़ा करना आरम्भ कर दिया। अब के तो उमने सेना एकत्र करके बुल्लमखुल्ला पारलियामेंट से युद्ध ठान दिया। विवश होकर पारलियामेंट को भी युद्ध की तैयारी करनी पड़ी । सन् 1642 ईमवी के अगस्त महीने में राजपक्ष तथा प्रजापक्ष की सेनाओं में लड़ाई होने लगी। पहले दो तीन लड़ाइयों में राजपक्ष की सेना विजयी हुई; परन्तु अन्त में जब स्काटलैंड की सेना भी पारलियामेंट की मेना में आ मिली तब सन् 1644 ईसवी में, इन दोनों ने मिल कर, माटुन मूर की लड़ाई में, राजा को अच्छी तरह पराजित किया। सन् 1645 ईसवी में, नेस्वी की लड़ाई में, राजा की बची बचाई मारी सेना नष्ट हो गई। उसके सारे सहायक अपनी अपनी जान लेकर इधर उधर भाग गये। रहा राजा चार्ल्स सो उसे पारलियामेंट की सेना ने कैद कर लिया। पारलियामेंट और उसकी सेना को इस बात पर बहुत क्रोध आया कि राजा ने प्रजा के कल्याण की कुछ भी परवा न की और युद्ध करके व्यर्थ ही लोगों का खून बहाया। विशेष क्रोध आने की बात यह थी कि एक ओर तो राजा पारलियामेंट के साथ सन्धि