पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४६४

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-460 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली के और भी अनेक उदाहरण हैं । ऐसी अवस्था में यह कैसे कहा जा सकता है कि अंगरेज गुरुओं की शिक्षा में रह कर भी, हम लोगों को शिक्षा, व्यवसाय, समाज आदि से सम्बन्ध रखने वाली अपनी उन्नति करने में अनन्त समय लग जायगा? जो लोग यह कहते हैं कि इस देश की उन्नति के लिए अनेक युगों की आवश्यकता है-अतएव अपनी भावी उन्नति के विषय में किसी प्रकार का ध्येय स्थिर करना मानो द्वितीया का चांद मांगना हैं-उनकी राय से हम सहमत नहीं। हाँ, हमारी उन्नति में बाधा डालने वाले अनेक प्रतिबन्ध अवश्य हैं । तथापि हमारा विश्वास है और यह विश्वास अनेक दृढ प्रमाणों के आधार पर स्थित है कि यदि करना चाहें तो हम अपनी उन्नति बहुत शीघ्र कर सकते हैं । हम लोगों को अँगरेज़ जाति के अनेक सद्गुणों का अनुकरण तथा अभ्यास भर करते रहना चाहिए । निराशावाद का त्याग करके आशावाद का अवलम्ब करना चाहिए। स्वार्थ पर तिलांजलि दे देना चाहिए। स्वभावसिद्ध मानवी स्वत्वो की प्राप्ति के लिए नियमपूर्वक प्रयत्नों और नीति समय उपायों में लगे रहना चाहिए। परमेश्वर प्रयत्न करने वालों ही की सहायता करता है, आलसियों की नहीं। [4] फ्रांस में राज्य-क्रान्ति प्रस्तावना यह बड़ा कठिन विषय है। इस विषय पर अनेक विद्वानों ने अनेक ग्रन्थ लिखे है । विलायत में विश्वविद्यालय की शिक्षा का प्रचार करने के लिए एक अनमोल ग्रन्थमाला प्रकाशित की जा रही है। अँगरेजी में उसको 'University Extension Series' कहते है। इस माला में ऐतिहासिक, वैज्ञानिक और साहित्य-सम्बन्धी ग्रन्थ प्रकाशित होते हैं, जो कि जान-प्राप्ति की इच्छा करने वाले विद्यार्थियों तथा अन्य लोगों को अपने घर में बैठे ही बैठे उपयोगी बातों की शिक्षा दे सकते हैं। इन ग्रन्यों के विषय में, माला के उद्देशपत्र में, लिखा है कि प्रत्येक ग्रन्य योग्य लेखक से लिखवाया जायगा और विषयों का विवेचन उदार, विस्तृत तथा तात्त्विक दृष्टि से किया जायगा। हिन्दुस्तान के कालेलों में इस माला में बहुतेरे ग्रन्थ वी० ए० और एम० ए० के विद्यार्थियों को पढ़ाये जाते हैं । प्रस्तुत विषय पर कारलाइल बर्क और साइम्स के मर्वमान्य ग्रन्थ अनेक लोगों पढ़े होंगे। माइम्स ने, उक्त ग्रन्यमाला के लिए, इस विषय पर जो पुस्तक लिखी है उसकी भूमिका में नीचे उद्धृत किये गये वाक्य ध्यान देने योग्य हैं- "It is scarcely necessary to say that much caution should be used when applying such lessons to particular circumstances. Yet such 1, C.--"... and the subjects will be treated by competent writers in a broad and philosophic spirit."