पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४६५

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यूरोप के इतिहास से सीखने योग्य बाते | 461 applications have to be made. We rightly expect the history of the past to throw light on the question of the present. This light cannot safely be neglected by those wishing to form sound political judg- ments. A little knowledge may be dangerous, but complete ignoranc is more dangerous still.' ऊपर लिखी हुई बातों का उल्लेख व्यर्थ ही नहीं किया गया है । उल्लेख करने का का हेतु है । आरम्भ में कहा गया है कि यह विषय वहुत कठिन है। यह जितना कठिन है उमसे अधिक कठिनाई इस बात में देख पड़ती है कि इस विषय से किस प्रकार की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। इसका कारण यह है कि इस विषय की ओर भिन्न भिन्न लोग भिन्न भिन्न दृष्टि से देखते हैं। कोई कहते है कि फास देश की राज्य-क्रान्ति के समय अनेक अद्भुत, चमत्कारिक और भयानक घटनायें हो गई हैं। इसलिए उन्ही का विशेष वर्णन होना चाहिए। कोई कहते हैं कि उस जमाने मे आदर्श विचारों की सफलता का यत्न किया गया था। इसलिए उन्ही उदात्त, उत्तम और ऊँचे विचारो का वर्णन किया जाना चाहिए। कोई कहते हैं कि यह राज्य-क्रान्ति यूरोप के राष्ट्रो के आपस के सम्बन्ध के इतिहास का सिर्फ एक हिस्मा है । इमलिए यूरोप के सब देशो के पारस्परिक सम्बन्ध ही का अधिक वर्णन करना चाहिए। कोई कहते हैं कि इस राष्ट्र-परिवर्तन ने मध्ययुग की अनेक संस्थाओ का विध्वंम कर दिया । इमलिए इमी दृष्टि से इमका विचार करना चाहिए । कोई कहते हैं कि यह अत्यंत भयानक राजनैतिक विषय है-इससे सौ कोस दूर ही रहना चाहिए। इस प्रकार अनेको के अनेक मत है । ऐसी अवस्था मे इस विषय से कोई नतीजा निकालना बहुत कठिन जान पड़ता है। परन्तु माइम्स साहव अपनी उक्त भूमिका में यह राय प्रकट करते हैं कि, यद्यपि इस विषय से शिक्षा ग्रहण करने का काम कठिन है तथापि हमको कुछ न कुछ शिक्षा अवश्य ग्रहण करनी चाहिए । यदि ऐतिहासिक घटनाओं की केवल रूखी-सूखी बातें बता दी जायँ और यदि उनका कुछ भी उपयोग न किया जाय-उनसे किसी प्रकार की शिक्षा न ली जाय-तो इतिहास से हमारा कोई लाभ न होगा। इसमें सन्देह नहीं कि इतिहास की भूतकाल की घटनाओ से, वर्तमान समय में नतीजा निकालने का काम बहुत सावधानी, चतुरता और दक्षता से किया जाना चाहिए । इस प्रकार सावधानी से नतीजा निकालने के काम में यदि कुछ भूल हो जाय तो भी वह क्षमा के योग्य है, क्योकि भूल-मिश्रित वह नतीजा निरे अजान से कही बढ़ कर है । अतएव ऐसे कठिन विषय की चर्चा करके उससे कुछ शिक्षादायक बातें प्रकट करने का साहस हमने उन्हीं साइम्स साहब के आधार पर किया है जिनकी पुस्तक विलायती विश्वविद्यालय की ग्रन्थमाला का एक मनोहर पुण है और जो सभी विद्वान् लोगो को मान्य है तथा हिन्दुस्तान के कालेजों के छात्रों को भी बड़े चाव से पढाई जाती है। इस बात का कदापि विस्मरण न करना चाहिए कि उक्त ग्रन्यमाला के उद्देश के अनुसार ही इस लेख में प्रस्तुत विषय की विवेचना अत्यन्त उदार, विस्तृत और तात्त्विक दृष्टि से की गई है। आशा और विश्वास है कि इस लेख को पढ़ कर, इस विषय से शिक्षा ग्रहण करने में, हमारे पाठकगण किसी प्रकार का प्रमाद या भूल न करेंगे।