पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४६८

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464 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली में, बड़े बड़े सरदारों, रईसों, जमींदारों और धर्माधिकारियों ने बड़े बड़े वेतन और अधिकार के सब पद प्राप्त कर लिये। इसका परिणाम यह हुआ कि हक़दार वर्ग के सब लोग सरकारी करों से मुक्त हो गये और करों का सारा बोझ सर्वसाधारण पर लद गया। इसी समय, अर्थात् पन्द्रहवें लुई के शासन-काल में, स्वतन्त्र विचार के लेखकों और वक्ताओं ने देश में जागृति का आरम्भ कर दिया। इन उपदेशकों के 'स्वाधीनता, समानता और बन्धुत्व' (Liberty, Equality and Fraternity) सम्बन्धी नूतन मतों ने सब लोगों पर जादू के समान असर किया। सब लोग वर्तमान स्थिति से असन्तुष्ट हो गये। पन्द्रहवें लुई ने कुछ सुधार करने का यत्न किया, पर वह सफल न हुआ। इतने में उसके शासन का अन्त हो गया और सोलहवाँ लुई फ्रांस की राजगद्दी पर बैहा। वह अच्छे स्वभाव का आदमी था। वह राज्य-प्रबन्ध में सुधार करके सर्वसाधारण लोगों को सुखी करना चाहता था । परन्तु ऐसे विकट समय में राजा को जिन सद्गुणों की आवश्यकता होती है वे उसमे न थे। उसमें स्वयं विचार करने की शक्ति न थी और न उसमें अपने विचारों के अनुसार कार्य करने का धैर्य ही था। साइम्स साहब ने उसके विषय में लिखा है कि, वह दूकानदारी या सवारी- शिकारी का काम भली भाँति कर सकता था। मतलब यह कि जिम समय देश में नूतन और स्वतन्त्र विचारो के कारण चारों ओर हल-चल मच रही थी उस समय किसी चतुर और धैर्यवान् राजा की आवश्यकता थी। लुई इस काम के योग्य न था। दुर्भाग्य से उसको रानी भी विलासवती मिली थी। गनी ने उसको अपना दाम सा बना लिया था ! राजा ने अनेक बार अपने मन्त्रियों की सहायता से गज्य में सुधार करने का यत्न किया। टरगाट नाम के एक मन्त्री ने धाम्मिक स्वाधीनता, राष्ट्रीय शिक्षा, प्रतिनिधि द्वारा राज्य-शासन करने की पद्धति तथा व्यापार की उन्नति के विषय में सुधार करने की प्रतिज्ञा भी की । परन्तु इन सुधारों का नाम सुनते ही फांस के हक़दार वर्गों के लोग राजा से विगड़ खड़े हुए । राजा ने तुरन्त ही टरगाट को मन्त्री के पद से अलग कर दिया और नेकर नाम के दूसरे मन्त्री को उसके स्थान में नियत किया । नेकर ने देखा कि सरकारी खजाने का द्रव्य बहुत से फिजूल कामों मे खर्च होता है। इसलिए उसने सबसे पहले यह प्रबन्ध किया कि निरर्थक व्यय न होने पावे । इसका परिणाम यह हुआ कि रानी अप्रसन्न हो गई । नेकर भी मन्त्री के पद से अलग कर दिया गया। इसके बाद और भी कई मन्त्रियों ने सुधार का प्रयत्न किया; परन्तु लुई अपनी रानी तथा बड़े लोगों के चुगल में ऐमा फँस गया था कि मुधार का एक भी यत्न मफल न होने पाया । अन्त में स्टेट्स जनरल नाम की, फ्रांस देश के सब प्रजागणों के प्रतिनिधियों की, सभा करने का निश्चय हआ। 1. Cf.--"As a shopkeeper or a gamekeeper he might have done fairly well." 'The French Revolution', p. 31 म.द्वि. र०-4.