पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४७४

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470/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली - वर्गों से पीड़ित होना पड़ेगा। यह सोच कर उन लोगों ने अपने देशवासियों में, अपने देश की स्वाधीनता की रक्षा के लिए, उत्साह की जागृति आरम्भ कर दी। सारे देश में इश्तहार जारी किये गये कि "भाइयो, अपने देश की रक्षा करो!" स्त्री-पुरुष, छोटे- बड़े, सब लोग अपने देश की रक्षा के लिए उत्तेजित हो उठे। परन्तु काम केवल उत्माह से नहीं होता। विश्वासपूर्वक कर्तव्य बुद्धि जागृत होनी चाहिए। अफ़सरों तथा उनके अधीनस्थ लोगो को यह विश्वास होना चाहिए कि यदि हम सरकार की आज्ञा न मानेंगे तो हमारी हानि होगी। यह विश्वास, कैद और मृत्यु के भय से, कानून की सत्ता से, अथवा बलात्कार से लोगों में पैदा किया गया। बस, फ्रांस में मूत्तिमान भय का साम्राज्य (Reigh of Terror) शुरू हो गया। इस भयानक नीति के पक्षपातियो में डैन्टन, मैरट, राब्सपीयर इत्यादि लोग प्रमुख थे। जिन लोगो ने 1792 के अगस्त महीने में बलवे की सहायता से राज्य का प्रवन्ध अपने अधीन कर लिया था वे अब फूट की जड़ उखाडने के लिए अत्याचार करने लगे। ज्यों ही किमी मनुष्य के विषय मे यह सन्देह होता कि वह राजा का पक्षपाती है या विदेशियों की सहायता करता है त्यों ही वह पकड़ लिया जाता और कारागार में बन्द कर दिया जाता। इसके बाद इन कैदियो की कुछ थोडी मी जाँच की जाती और मबके मव फाँसी पर लटका दिये जाते । कम से कम एक हजार आदमी, इस प्रकार, सितम्बर महीने मे, मारे गये । यद्यपि इम घोर अत्याचार के कारण सारे देश में हाहाकार मच गया तथापि उमसे यह फल प्राप्त हुआ कि लोग गुप्त रीति से, गजा, हक़दार-वर्ग या विदेशियो का पक्षपात करने से डरने लगे। उन्हे मालूम हो गया कि यदि हम अपने देश के शत्रुओ के माथ मिले रहेगे तो एक दिन हम भी जान से मारे डाले जायेंगे। यह बात ध्यान में रखन योग्य है कि राष्ट्रीय सभा को ये भयंकर काररवाइयाँ पमन्द न थीं-मच बात तो यह है कि उस समय यथार्थ मे राष्ट्रीय सभा थी ही नही; उसका नायकत्व गरम दल वाले मुट्ठी भर आदमियो के हाथ में चला गया था और वही मनमाना काम किया करते थे। अब उन लोगों का ध्यान राजा लुई की ओर आकृष्ट हुआ। वह उनकी कैद में था ही। पर वे उसको कैद मे न रखना चाहते थे, क्योंकि उसके कारण देश मे फूट होने का भय था। इसलिए राजा को मार डालने और फ्रांस मे प्रजासत्ताक गज्य स्थापित करने का उन लोगो ने निश्चय किया। मभा मे इस विषय पर बहुत चर्चा हुई । अन्त मे, 11 दिसम्बर 1792 को, वह मुलजिम के तौर पर न्यायालय के सामने उपस्थित किया गया। उस पर देश-द्रोह का अपगध लगाया गया । हुक्म सुनाने के पहले खूब उत्तेजनापूर्ण वाद-विवाद हुआ। फल यह हुआ कि 310 मतों के विरुद्ध 380 मतों के अनुसार राजा का वध, निश्चित हुआ। 21 जनवरी 1793 को वह फाँसी पर लटका दिया गया । फ्रांस के राजा सोलहवें लुई के कत्ल किये जाने का समाचार जब लन्दन में पहुंचा तब वहाँ के सब लोग बहुत दुःखित हुए। सारे शहर में मातम छा गया। नाटक- घर और दुकानें बन्द हो गईं। सरकार ने लड़ाई की तैयारी की। पन्द्रह दिन के भीतर हालैंड, स्पेन, पोर्चुगाल इत्यादि अनेक देश इंगलैंड के साथी हो गये । सारा योरप फ्रांस के अत्याचारों से कांप उठा था। इससे सब लोगों ने मिल कर फ्रांस पर चढ़ाई की। बरसों