पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४७९

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यूरोप के इतिहास से सीखने योग्य बातें | 475 - [5] धाम्मिक परिवर्तन इस संसार में धर्म का इतिहास बहुत ही मनोरंजक और शिक्षादायक है । मानब-जाति की यथार्थ उन्नति का बहुत बड़ा साधन इम जगत् के मभी धर्मों के तुलनात्मक इतिहास का है । मनुष्य के विकास का मच्चा स्वरूप उसके धाम्मिक परिवर्तनो से अच्छी तरह अध्ययन प्रकट हो जाता है । यह विषय बहुत व्यापक है। उमका पूर्ण विवेचन एक छोटे से लेख में नही किया जा सकता । अतएव इमको मर्यादाबद्ध करना आवश्यक है । इम लेख में सिर्फ़ योरप के धाम्मिक परिवर्तन का संक्षिप्त वर्णन किया जायगा. कही कहीं हिन्दू धर्म की दशा का उल्लेख भी किया जायगा और यथासम्भव कुछ शिक्षादायक बाता का निरूपण भी किया जायगा। पहले इस बात से ओर ध्यान देना चाहिए कि योरप मे ईमाई धर्म के प्रचार और विस्तार से लोगो को क्या लाभ हुआ। आरम्भ मे, यूरोप के प्राय. मभी देशो में. मूर्तिपूजा औ: ।तिक पदार्थ पूजा का प्रचार था. जन-समाज मे ऊँच-नीच, स्वामि- मेवक आदि अनेक कृत्रिम भेदभाव रूढ़ हो गये थे, स्त्रियाँ और दास, स्वाधीनता तथा ज्ञानप्राप्ति के अयोग्य समझे जाते थे, केवल तात्रिक और औपचारिक विधियो का विशेष महत्त्व माना जाता था और धर्म के यथार्थ रहस्य की ओर कुछ भी ध्यान न दिया जाता था। परन्तु ईसाई धर्म के प्रचार से ये मव बाते बदल गई। स्त्रियो का आदर होने लगा, दामा की पराधीनता के विषय में हलचल मचने लगी; यह मत प्रचलित होने लगा कि प्रत्येक व्यक्ति को नियम-निर्दिष्ट स्वाधीनता और ज्ञानप्राप्ति का अधिकार है; ईश्वर की समान दृष्टि के विषय में लोगों को यथार्थ ज्ञान होने लगा; मनुष्यो के बर्ताव मे अन्याय के बदले न्याय की विशेष रुचि प्रकट होने लगी और धाम्मिक आचरण के सम्बन्ध मे, शुष्क तथा औपचारिक विधियो के बदले, आन्तरिक शुद्धि, प्रेम, भक्ति, नीति, दया, परोपकार, सहानुभूति आदि सात्त्विक गुणो की अधिक आवश्यकता प्रतीत होने लगी। योग्प के इतिहास में यही पहला धाम्मिक परिवर्तन है। उक्त धाम्मिक परिवर्तन के पहले भी (जव सारा योरप खण्ड, धर्म तथा ईश्वर- सम्बन्धी ज्ञान मे, केवल मूढ़ अवस्था में था) ग्रीस और रोम में, साक्रेनीस, प्लेटो, अरिस्टाटल, सिसरो, सेनेका, एपिकटीटस आदि बडे-बड़े ज्ञानियों महात्माओं ने, अपने व्याख्यान, ग्रन्थ और आचरण द्वारा, लोगों को ईश्वर, धर्म, नीति और न्याय की शुद्ध शिक्षा देने का यत्न किया था। ईसाई धर्म के पैग़म्बर पाल और उनके अनुयायियो ने, उक्त अध्यात्म शिक्षा के सारभूत तत्त्वो को, अपनी दूतन धर्म-संस्थान में शामिल कर लिया । इसका परिणाम बहुत अच्छा हुआ। कई सदियों तक, यूरोप में, विद्याभ्यास, धर्मज्ञान और शुद्ध आचरण का पवित्र तथा उन्नतिकारक प्रवाह बहता रहा। इस समय यूरोप की धाम्मिक संस्थाओं ने, मानव-जाति की उत्क्रान्ति के लिए, जो अनेक परोप- कारी तथा कल्याणकारक कार्य किये वे सभी इतिहासज्ञों से छिपे नही है । परन्तु कुछ समय बाद इन्हीं धाम्मिक संस्थाओं को स्वार्थ, अज्ञान और अहंकार ने घेर लिया; योरप -.