पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४८६

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482 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली त्याग न किया। इन लोगों के हृदय से मृत्यु का भय मानो स्वयं ही डर कर भाग गया था । स्वधर्म की रक्षा के लिए-स्वमत के अनुसार बर्ताव करने के लिए प्राणोत्सर्ग कर देना बहुत बड़ा भूषण माना जाता था ! जो लोग इस प्रकार शहीद (Martyrs) हुए वे मब ईश्वर की विशेष कृपा के पात्र समझे गये। उनमें से बहुतेरों के नाम माधु-सतों और महात्माओ में गिने जाने लगे। इन शहीदों का उदाहरण देख कर प्रोटेस्टेन्ट पन्थ के लोगों में ऐसा जोश आ गया कि उन्होने, स्वधर्म की रक्षा और उसके प्रचार में, भयानक से भी भयानक संकटों की कुछ भी परवा न की । मेरी के मरने पर एलीजावेथ गद्दी पर बैठी। उमके जमाने में इंगलैड की बहुत उन्नति हुई । धर्म के विषय में वह मदा तटस्थ रहा करती थी। परन्तु जब प्रथम जेम्स गद्दी पर बैठा तब धर्म के विषय में फिर छेडछाड़ होने लगी। उसके जमाने में आयरलैंड के निवासी इतने तंग किये गये कि बहुतों ने अपने धर्म की रक्षा के लिए स्वदेश का त्याग तक कर दिया । इन्हीं स्वदेश-त्यागियों की बदौलत अमेरिका का प्रदेश बसा है । यह घटना इस बात की गवाही देती है कि बुरी बातों से भी भलाई हो जाया करती है । परमेश्वर को अनेक धन्यवाद हैं कि जिस इंगलैंड के प्रतापी, पराक्रमी, मन्य- परायण और ज्ञान-मम्पन्न लोगो ने, धाम्मिक स्वाधीनता के लिए, प्रदीप्त अग्निकुण्ड की भी परवा न की उमी विजयी और उन्नतिशील देश के साथ हमारा गहरा सम्बन्ध स्थापित हो गया है। यूरोप के धाम्मिक परिवर्तन के योग से अंगरेज़ जाति का जो भाग्योदय हुआ है उम ओर ध्यान देकर हम लोगों को कुछ शिक्षा अवश्य लेनी चाहिए + अंगरेजी राज्य की सत्ता में रह कर, राजनिष्ठायुक्त आचरण करते हुए, हम लोगों को अपनी व्यक्तिगत तथा सामाजिक और धाम्मिक उन्नति करनी चाहिए। हम लोगो को सोचना चाहिए कि निरर्थक तथा हानिकारक बन्धनों से हमारी मुक्ति किस तरह होगी । ऊपर कही पर इस बात का कुछ उल्लेख किया गया है कि इस समय हमारे धर्म और समाज की दशा कैसी है। इसमें मन्देह नहीं कि यदि हमारे सनातन धर्म के स्वरूप के ज्ञान का प्रचार करने के लिए यत्न किया जाय तो उमसे हमारे देश की केवल आध्यात्मिक उन्नति ही न होगी किन्तु लौकिक, व्यावहारिक और राष्ट्रीय हित की भी वृद्धि होगी। यह मन्तोपदायक बात है कि यूरोप के इतिहास की शिक्षा पाकर, पश्चिमी विद्या के प्रकाश से जागृत होकर, और विशेषतः अँगरेज़ जाति के कल्याणकारक उदाहरणों से उत्तेजित होकर कुछ लोग सामाजिक और धाम्मिक सुधारों की ओर ध्यान देने लगे हैं । इस देश की वर्तमान जागृति की ओर ध्यान देने से यह कहना पड़ता है कि अब यहाँ भी जान-सूर्य का उदय हो रहा है । परन्तु भविष्यत् में बहुत काम करना है । लोगों का धाम्पिक और नैतिक शील सुधारने के लिए देशी भाषाओं के द्वारा जागृत की जानी चाहिए। हमारे धर्म-ग्रन्थों का ज्ञान-भाण्डार जो संस्कृत भाषा में छिपा पड़ा है, देशी भाषाओं के द्वारा घर घर, प्रत्येक व्यक्ति के पास, पहुंचाया जाना चाहिए । सत्य और सनातन धर्म की रक्षा तथा अपने मतों का प्रचार करने में किसी विघ्न या संकट से भयभीत न होना चाहिए । लूथर जैसे धर्मप्रचारकों और अंगरेज शहीदों के पवित्र चरित्रों से ज्ञान-निष्ठा, सत्य-सम्बन्धी अटल प्रेम और धाम्मिक श्रद्धा इत्यादि दैवी गुणों की शिक्षा शुद्ध और यथार्थ