पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४८७

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यूरोप के इतिहास से सीखने योग्य बातें / 483 लेनी चाहिए । यदि मिथ्याभिमान अथवा दुरभिमान का त्याग करके सामाजिक सुधार और धाम्मिक परिवर्तन का कार्य किया जाय तो हमारे देश की उन्नति होने में बहुत समय न लगेगा । सत्य ज्ञान के अभाव से मोह और अनानरूपी अन्धकार शीघ्र ही नष्ट हो जायगा । और, परमेश्वर की कृपा से हमारे सनातन हिन्दू धर्म के अनुयायियों में वह सामर्थ्य एक दिन अवश्य देख पड़ेगा कि जिसका वर्णन पुराण-ग्रन्थो में पढ़ कर यूरोप- निवामी इम ममय भी मुग्ध हो रहे है । तथास्तु । [जून, जुलाई, अगस्त, सितम्बर एवं नवम्बर, 1913 की 'सरस्वती' में तिमूर्ति शर्मा एवं त्रिविक्रम गर्मा नाम से प्रकाशित । असंकलित।