पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४८९

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इन सामग्रियों में अत्यधिक विविधता होने के कारण उन्हें कई भागों में बाँटा गया है। पहले भाग में प्राचीन भारत की सभ्यता-संस्कृति का दूसरे देशों में किस प्रकार विकास हुआ था, इसकी झलकियाँ हैं। दूसरे भाग में विदेशी विद्वानों द्वारा जो संस्कृत-साहित्य पर काम हुए थे एवं जिन कामों के कारण यूरोपीय समाज में भारत के प्रति दृष्टि बदली थी-उन सामग्रियों को संयोजित किया गया है। तीसरे भाग में विश्व के अनेक देशों पर विविध विषयों के निबन्ध हैं। साथ ही इसमें दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी के द्वारा जारी आन्दोलन का विस्तृत विवरण भी है तथा लीग ऑफ नेशन्स पर एक आलोचनात्मक निबन्ध भी है। चौथे भाग में विदेशी विद्वानों, संस्कृतज्ञ, समाज-सुधारक, राजनयिक, सेनानायक, वैज्ञानिकों के जीवन-चरित हैं। इनकी संख्या 34 है। पाँचवें खण्ड में उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव की यात्राओं का रोमांचक वर्णन, इटली के विस्यूवियस नामक ज्वालामुखी एवं पापियाई नगर आदि पर ग्यारह निबन्ध हैं। छठे भाग में अफ्रीका, मैक्सिको, मैडेगास्कर,अंडमान आदि के मूल आदिवासियों के जीवन का समाजशास्त्रीय चित्रण है।