पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/५१

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भाग : दो सर विलियम जोन्स ने कैसे संस्कृत सीखी , सर विलियम जोन्स संस्कृत के बहुत प्रसिद्ध पंडित हो गए हैं । उन्होंने बंगाल की एशिया- टिक सोसाइटी की नींव डाली थी। यद्यपि उनके पहले भी कई योरप निवामियों ने इस देश में आकर संस्कृत की थोड़ी बहुत शिक्षा प्राप्त की थी, तथापि सर विलियम की तरह बड़ी बड़ी कठिनाइयों को झेलकर संस्कृत का यथेष्ट ज्ञान और किसी ने उनके पहले नहीं प्राप्त किया था। एशियाटिक सोसायटी की स्थापना करके उन्होंने बहुत बड़ा काम किया। इस मोसायटी की बदौलत पौर्वात्य भाषाओं के अनेक अलभ्य ग्रन्थ आज तक प्रकाशित हो चुके हैं और अनेक अश्रुतपूर्व विद्या और कला आदि के विषय की बातें मालूम हुई हैं। यदि सर विलियम जोन्स संस्कृत सीखकर संस्कृत के ग्रन्थों का अनुवाद अंग्रेजी में न प्रकाशित करते तो शायद संस्कृत भाषा और संस्कृत-साहित्य का महत्त्व योरप के विद्वानों पर विदित न होता । और यदि होता भी तो बहुत दिन बाद होता। जून, 1907 के "हिन्दुस्तान रिव्यू' में एक छोटा सा लेख, श्रीयुत एस० सी० सन्याल, एम० ए०, का लिखा हुआ प्रकाशित हुआ है। उसमें लेखक ने दिखलाया है कि कैसी-कैसी कठिनाइयों को झेलकर सर विलियम ने कलकत्ते में संस्कृत सीखी । क्या हम लोगों में एक भी मनुष्य ऐमा है जो सर विलियम की आधी भी कठिनाइयाँ उठा कर संस्कृत सीखने की इच्छा रखता हो? कितनी लज्जा, कितने दुःख, कितने परिताप की बात है कि विदेशी लोग इतना कष्ट उठाकर और इतना धन खर्च करके संस्कृत सीखें और संस्कृत-साहित्य के जन्मदाता भारतवासियों के वंशज फ़ारसी और अंगरेजी-शिक्षा के मद में मतवाले होकर यह भी न जाने कि संस्कृत नाम किसका है ! संस्कृत जानना तो दूर की बात है, हम लोग अपनी मातृभाषा हिन्दी भी तो बहुधा नहीं जानते । और जो लोग जानते हैं उन्हें हिन्दी लिखते शरम आती है ! इन मातृभाषा-द्रोहियों का ईश्वर कल्याण करे ! सात समुद्र पार कर इंगलैंड वाले यहाँ आते हैं और न जाने कितना परिश्रम और खर्च उठाकर यहाँ की भाषायें सीखते है । फिर अनेक उत्तमोत्तम ग्रन्थ लिखकर ज्ञानवृद्धि करते हैं। उन्हीं के ग्रन्थ पढ़कर हम लोग अपनी भाषा और अपने साहित्य के तत्त्वज्ञानी बनते हैं । पर खुद कुछ नहीं करते। करते हैं सिर्फ व्यर्थ कालातिपात । और करते हैं अंगरेजी लिखने की अपनी योग्यता का प्रदर्शन । घर में घोर अंधकार है, उसे तो दूर नहीं करते। विदेश में जहां गैस और बिजली की रोशनी हो रही है, चिराग जलाने दौड़ते सर विलियम जोन्स, सुप्रीम कोर्ट के जज मुकर्रर होकर, 1783 ईसवी में