पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/५६

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52 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली कीमत की जिल्दें खरीद ली हैं । पर जैसे नई पुस्तकें अधिक से अधिक महँगी होती हैं, वैसे ही पुरानी पुस्तकों के सस्ते से सस्ते सस्करण, सैकड़ों की तादाद में, निकलते चले आते है । अँगरेज़-लेखकों और प्रकाशकों ने अपने तजुरबे से यह नतीजा निकाला है कि सस्ती पुस्तको से लोगों को पढ़ने का चसका जहाँ एक बार लग गया तहाँ वे नई पुस्तकें, महंगी होने पर भी खरीदने को मजबूर होते है। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि सारे साहित्य-व्यापार की जड़ लेखक ही हैं। उन्ही की क़दर या नाक़दरी पर साहित्य की उन्नति या अवनति का दारोमदार है। यह कहा जा चुका है कि इंगलैंड के लेखक खूब रुपया पैदा करते हैं-इसके कुछ उदाहरण भी सुन लीजिये । वहाँ 'स्टेंड' और 'ब्लेकउड' नामक दो प्रसिद्ध मासिक पत्र हैं । वे अपने लेखको को 45 से 75 रुपये तक प्रति हजार शब्दों के देते है । मामूली मासिक पत्र भी कम से कम अपने लेखकों को बत्तीस रुपये प्रति हजार शब्दों के देते हैं । अधिक से अधिक की बात ही न पूछिए । उपन्यासकारों को प्रति शब्द के हिसाब से उजरत दी जाती है । जब, 1894 में स्टेविन्सन नामक उपन्याम-लेखक मरा तब हिमाब लगाने से मालूम हुआ कि अपने जीवन भर में जितने शब्द उसने लिखे, छ: आने प्रति शब्द के हिसाब से उमको उजरत मिली । पर आज-कल यह दर कुछ बहुत नही समझी जाती । 'ग्रियर्मन्स मैगज़ीन' के प्रकाशक ने एक किस्से के लिए उसके लेखक किलिग साहब को बारह आने प्रति शब्द दिये थे । सर आर्थर केनन डायल जासूसी किस्से लिखने में बड़े सिद्धहस्त हैं । उन्होंने उक्त मासिक पत्र में जो आख्यायिकायें लिखी हैं, उनमें से प्रत्येक आख्यायिका का पुरस्कार उनको 11,030 रूपये मिले हैं । अर्थात् प्रति शब्द सवा दो रुपये, या प्रति पंक्ति माढ़े वाईस रुपये !!। वेल्म नामक एक साहब अपने लेखों के लिए प्रति एक हजार शब्दों के 455 रुपये पाते है । हम्फ्री वार्ड नाम की एक मेम माहवा को अमेरिका की मामिक पुस्तकें उनके उपन्यासों की लिखाई एक लाख शब्दों के डेढ़ लाख रुपये देती हैं !!! मतलब यह कि इस समय इंगलैंड के ग्रन्धकारो की दशा बहुत अच्छी है। ईश्वर करे, भारत के ग्रन्थकारों को भी ऐसे सुदिन देखने का मौभाग्य प्राप्त हो । [सितम्बर, 1908 की 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'साहित्य-सोकर' में संकलित ।]