पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/६३

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योरप में विद्वानों के संस्कृत-लेख और देवनागरी लिपि /59' - कुछ समय तक रहते हैं उनके लिए तो यह बात और भी सहज है। इस पर भी कई विद्वान् योरप में ऐसे हो गये है, और अब भी कई मौजूद हैं, जिनकी लिखी संस्कृत भाषा देखकर, मालूम होता है कि वह उन्हे करतलगत आमलकवत् हो रही है । डाक्टर बूलर और पिटर्स बिना रुके संस्कृत में बातचीत कर सकते थे। कुछ समय हुआ, रूस के एक विद्वान् भारत आये थे, वे भी अच्छी संस्कृत बोल लेते थे। विदेशियों की संस्कृत बोली में यदि कोई विलक्षणता होती है तो वह उच्चारण सम्बन्धिनी है। परन्तु इस प्रकार की विलक्षण ता स्वाभाविक है। हम लोगों की अंगरेज़ी भी तो विलक्षणता से खाली नहीं। कोई साठ वर्ष हुए जेम्स राबर्ट बालेंटाइन नामक एक विद्वान्, बनारस के गवर्नमेंट कालेज में, प्रधान अध्यापक थे, वे संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे । अरवी-फ़ारसी में भी उनकी गति थी। संस्कृत वे बोल भी मकते थे और लिख भी सकते । संस्कृत भाषा और देवनागिरी लिपि के वे बड़े भारी पक्षपाती थे । वे चाहते थे कि अँगरेजी में जो ज्ञान-समूह है उससे भाग्नवासी लाभ उठावें और संस्कृत में जो कुछ ज्ञेय है उससे अंगरजी जाननेवाले लाभ उठावें । डमी में उन्होंने वनारस कालेज के संस्कृत-विभाग में पढने वालों को अँगरेज़ी भाषा मीखने का भी प्रबन्ध किया था। अपनी उद्देश्य-सिद्धि के लिए उन्होंने गवर्नमेंट की आज्ञा मे, कुछ उपयोगी पुस्तके भी प्रकाशित की थी। उनमें से एक पुस्तक का नाम है--Synopsis of Science. उममें योरप और भारत के शास्त्रों का मारांश अँगरेजी और संस्कृत भाषाओ में है। वालेंटाइन साहब की यह पुस्तक देखने लायक है। टम पुस्तक को छपे और प्रकाशित हुए पचास वर्ष से अधिक समय हुआ। इसका दूसरा संस्करण जो हमारे सामने मिर्जापुर के आर्फन स्कूल प्रेस का छपा हुआ है। न्याय, सांख्य, वेदांत, ज्यामिति, रेखागणित, बीजगणित, प्राणिशास्त्र, रसायनशास्त्र समाजशास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, कीट-पतंगशास्त्र, भूगोल विद्या. भूस्तरविद्या, राजनीति- विज्ञान, यहाँ तक कि सम्पत्तिशास्त्र तक के सिद्धान्तों का इसमे वर्णन है। पुस्तक दो भागों में विभक्त है । प्रथमार्द्ध में पूर्वोक्त शास्त्रों का सारांश, अंगरेजी में दिया गया है, और उत्तगर्द्ध में संस्कृत में । गौतमीय न्यायशास्त्र के आधार पर साध्य की सिद्धि की गई है । योरप और भारत के शास्त्रीय सिद्धान्तो में जहाँ-जहाँ विरोध है वहाँ-वहाँ योग्यतापूर्वक वह विरोध स्पष्ट करके दिखलाया गया है। परन्तु किसी के मत, सिद्धान या विवेचन पर कटाक्ष नहीं किया गया। एक उदाहरण लीजिए । गौतम-मूत्रों के आधार पर वालेंटाइन साहब ने एक जगह अपवर्ग, अर्थात् मोक्ष की व्याख्या करके यह लिखा- "पुनर्दुःखोत्पत्तिर्यथा न स्यात् विमोक्षो विध्वंसः तथा च पुनर्दुः खोत्पत्तिप्रतिबन्धको दुम्बध्वंसः परमपुरुषार्थस्तत्त्वज्ञानेन प्राप्तव्य इति गौतममतम् ।" इसके आगे ही आपने अपने, अर्थात् योरप के तत्त्वज्ञानियों के, मत का इस प्रकार निदर्शन किया-