पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/९४

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90/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली पानी भी कम बरसता है; क्योंकि बादल ऊँचे ऊँचे पहाड़ों को पार नहीं कर सकते; इसी तरफ़ रह जाते हैं। ख़ास नेपाल अर्थात् वह भाग जो पहाड़ों के बीच, दरी के रूप में है, बहुत तर है। इसी भाग में काठमाण्डू है। वहाँ की जमीन अत्यन्त उर्वरा है । वहाँ धान खूब होता है । जो ज़मीन कुछ ऊँची है उसमें गेहूँ होता है । पहाड़ों के पास की जमीन सबसे अच्छी है । वहाँ धान भी होता है और गेहूँ भी । कहीं कहीं एक साल में दो-दो तीन-तीन फ़सलें होती है। नेपाल में अक्तूबर से मार्च तक सर्दी रहती है और जनवरी-फ़रवरी में सख्त जाड़ा पड़ना है । अप्रैल से सितम्बर तक की आबोहवा तर रहती है; गरमी अधिक नहीं पड़ती। मार्च से मई और सितम्बर से दिसम्बर तक का मौसम बहुत अच्छा होता है । जून, जुलाई और अगस्त में वर्षा होती है । नेपाल में कई जाति के आदमी बसते है । उनमें से भोटिया, मगर, गुरुंग, नेवार, किराती, लेपचा और लिम्बू मुख्य हैं । भूटान की तरफ़ बहुत ऊँची जगहो मे भोटिया लोग रहते हैं । वे तिब्बत की भाषा बोलते हैं । उनके कपड़े-लत्ते, चाल-ढाल, रीति-रिवाज और शकल-सूरत तिब्बत वालों से मिलती है। नेपाल के बीच मे, पश्चिम की तरफ, कम ऊँची पहाड़ियों पर मगर और अधिक ऊँची पहाड़ियों पर गुरुंग जाति के लोग रहते है। नेवार लोग खास नेपाल की दरी में, और किराती और लिम्बू नेपाल के पूर्व रहते हैं । लेपचा जाति के लोग सिकम के पास की पहाड़ियो पर है । इन सबकी गिनती मंगो- लियन शाखा के आदमियों में हैं, अर्थात् मंगोलिया में रहने वालो की शकल-सूरत जैसी होती है उससे इन लोगों की शकल-सूरत मिलती है। इनके सिवा नेपाल में एक और जाति के आदमी रहते हैं । वे पार्वती या पर्वतिया कहलाते है । तेरहवीं सदी में हिन्दुस्तान से जो लोग भाग कर नेपाल चले गये थे। उनके और पहाड़ी स्त्रियों के समागम से इन लोगो की उत्पत्ति हुई है । मगर, गुरुंग और पर्वतिया जाति वालों के समूह का नाम गोर्खा या गोर्खाली है । बंगाल के भूतपूर्व लफ्टिनेंट गवर्नर, और बम्बई के गवर्नर, सर रिचर्ड टेम्पल का यह मत है। उन्होंने एक किताब लिखी है । उसी में आपने अपना यह मत प्रकाशित किया है । नेपाल में काठमाण्ड से 40 मील पश्चिम की तरफ़ गोर्खा नाम का एक शहर है । उसी के नाम पर गोर्खा लोगो का नाम पड़ा है। नेपाल की दरी में जो लोग रहते हैं, उनमें नेवार जाति वालों की संन्या मबसे अधिक है । नेपाल में पहले इन्ही लोगों का प्रभुत्व था। 768 ईमवी के लगभग गोर्खा लोगो ने नेपाल में अपना राज्य स्थापित किया । चपांग, कुसूदा और अवालिया लोग भी नेपाल के भीतरी जंगलों और तगइयों में रहते हैं । ये लोग वहाँ के आदिम निवामी हैं और हिन्दुस्तान के गोड, भील सौंताल आदि की तरह असभ्य और जंगली हैं। पहले नेपालियों में गोत्र या कुल का भेद न था । पर जब से हिन्दुस्तानियों ने नेपाल में कदम रक्खा और धीरे-धीरे पर्वतिया जाति की उत्पत्ति हुई तब से यह बात भी वहाँ हो गई। पर्वतिया लोगों में थापा, विसनायत, भण्डारी, अधिकारी, कार्की और दानी इत्यादि कुल भेद प्रचलित हैं। इन लोगों के सम्पर्क से मगर लोगों में राना और 1 ।