पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/९६

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.92 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली । है । पहाड़ी मुल्क में पैदल सिपाहियों के काम में कोई इनकी बराबरी नहीं कर सकता। इनका स्वदेशी हथियार खुकरी है। नेपाल में गुलामी की चाल अभी तक जारी है। वहाँ प्रायः सब समर्थ आदमियों के यहाँ गुलाम रहते है, गुलाम की कीमत कोई 150 रुपये तक होती है । स्त्रियां भी गुलाम का काम करती है। उनकी क़ीमत कुछ अधिक देनी पड़ती है । सुनते हैं, गुलाम स्त्रियो का चाल-चलन अच्छा नहीं होता। गुलामों के मालिक अपने गुलामों के साथ अच्छा वर्ताव करते है। नेपाल में प्रजा की शिक्षा का अच्छा प्रबन्ध नहीं है । धनवान आदमी अपने लड़कों को प्राय घर ही पर शिक्षक रखकर पढाते है । नेपाल से लड़के इस देश में भी विद्याध्ययन के लिए अकसर आते हैं । नेपाल मे भाषा-साहित्य का प्रायः अभाव ही है । पर संस्कृत के अनन्त अलभ्य ग्रन्थ वहाँ विद्यमान है । काठमाण्डू में जो राजकीय पुस्तकालय है, उमकी महामहोपाध्याय हरप्रमाद शास्त्री ने बहुत प्रशंसा की है। कई विद्वान् अँगरेज और हिन्दुस्तानी महीनो उमकी पुस्तको की सूची बनाते रहे, परन्तु पूरी नहीं बना पाये । जो मूची आज तक प्रकाशित हुई है, उममें हजारों ग्रंथ ऐसे है जो और कही प्राय. अलभ्य है । उनमे से अनेक ऐसे हैं जिनके नाम तक नही सुने गये थे। कितने ही ग्रन्थ युद्धविद्या, पणु- चिकित्मा और गृह- निर्माण पर वहाँ है । नेपाल की मनुष्य-मंठ्या ठीक ठीक नहो मालूम । नेपाल वाले कहते है कि उनके देश मे वावन लाख आदमी रहते है। पर विदेशी यात्रियो का अनुमान है कि वहाँ की आबादी इमसे कम है। नेपाल मे चार मणहर शहर हैं-काठमाण्डू, पाटन, कीतिपुर और भटगाँव । काठमाण्ड वागमती और विष्णुभनी नदियो के मंगम पर बमा है। उसकी आवादी 50,000 के करीब है। मकान कई मजिले है। महाराजाधिराज का राजभवन शहर के बीच में है। वहाँ अच्छी मड़के कम है। शहर में सफ़ाई कम रहती है। गली गली मे मन्दिर है। एक माहब ने लिखा है कि काठमाण्डू में आदमी कम है, मन्दिर अधिक । मन्दिरो मे बनलो. बकरो और भैमो का बलिदान होता है । वहाँ एक मन्दिर वहुत मणहर हर है। उसका नाम नलेजू है। एक बाज़ार भी वहाँ बहुत अच्छा है। वह काठमण्डू-टोल कहलाता है। महाकाल का पुराना मन्दिर और रानी-पोखरी नाम का नालाब भी वहां मशहर है। पाटन का मग नाम ललित पाटन है। वह काठमाण्डू से दो ही तीन मील दूर है । वह बहुत पुराना शहर है । उसकी आवादी 60,000 के करीब है। यह शहर पहले बहुत अच्छी हालत में था । पर जब गोर्खा लोगों ने नेपाल राज्य का सूत्र नेवार लोगों से छीना, नब उन्होने इस शहर को छिन्न भिन्न कर डाला। इसमें भी अनेक मन्दिर हैं। यहाँ बौद्ध लोगों के चैतन्य और विहार भी बहुत से है। मत्स्येन्द्रनाथ और महाबुध के बहुत पुराने स्थान यहाँ हैं । यहाँ का दरबार नामक प्रासाद बहुत ही अच्छी इमारत है । 1. अब यह बन्द हो गई है।