पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/९८

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•94 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली बहुत पीछे है । अतएव योरप के किसी सभ्य देश की सेना के सामने नेपाल की सेना अधिक देर तक नहीं ठहर सकती। सर टेम्पल अपनी किताब के पढ़ने वालों से कहते हैं कि ये बातें याद रखने लायक हैं। नेपाल में एक अंगरेजी दूत रहता है । उसे रेजिडेंट कहते हैं। उसी की मारफ़त नेपाल राज्य और हिन्दुस्तान की गवर्नमेंट में, आवश्यकतानुसार, लिखा-पढ़ी होती है। अंगरेजी बनिज-व्यापार का वही रक्षक है। रेजिडेंट साहब का वहां अच्छा रोब है। उनको ताजीम देने के लिये नेपाल के महाराजाधिराज तक अब उठ खड़े होने लगे हैं । गत एप्रिल में एक दरबार हुआ था। उसमें नेपाल-नरेश ने अपने आसन से उतर कर रेजिडेंट की अभ्यर्थना की थी। नेपाल-नरेश महाराजाधिकार कहते हैं और उनके मन्त्री महाराज । वहाँ मन्त्री ही राज्य के कर्ता, हर्ता और विधाता हैं। नेपाल का राज्य बहुत पुराना है। वहाँ कलियुग के भी पहले जो राजा हुए हैं उनका पता नेपाली पुस्तको में लगता है। पहले नेपाल में नेवार-जाति की प्रभुता थी। नेपाल की दरी में इसी जाति के चार छोटे छोटे राजा राज्य करते थे। उनकी राजधानियों काठमाण्डू, पाटन, कीर्तिपुर और भटगांव में थी। भटगांव को छोड़ कर ये सब शहर एक दूसरे से सिर्फ चार चार, पाँच पाँच मील के फ़ासले पर हैं। मिर्फ भटगांव काठमाण्डू से 7 मील है। तेरहवीं सदी में मुसलमानों के अत्याचार से तंग आकर उदयपुर के राजघराने के कुछ क्षत्रिय कुमाऊँ की तरफ़ चले गये। उनके माथ और भी कितने ही क्षत्रिय, सेवक और सहचर की भाँति, गये। कोई तीन सौ वर्ष तक उन लोगो की सन्तति वहाँ रहती रही और धीरे धीरे नेपाल की तरफ़ बढ़ती गयी सोलहवीं सदी में द्रव्यशाह नामक एक पुरुष विशेष प्रतापी हुआ। उसने गोर्खानगर को उसके राजा से छीन लिया और आप वहाँ का राजा हो गया। तभी से गोर्खा-राजों के राज्य का सूत्रपात हुआ। अठारहवीं सदी के उतरार्द्ध में पृथ्वी नारायण सिंह को गोर्खा की गद्दी मिली । कुछ दिन बाद पाटन, काठमाण्डू और भटगांव के नेवार-राजों में परस्पर विरोध पैदा हुआ। इमसे भटगाँव के राजा रंजीतमल ने पृथ्वीनारायण शाह से मदद मांगी। इस मदद का फल यह हुआ कि तीन-चार वर्ष में पृथ्वीनारायण सिंह ने युद्ध करके, कुटिल नीति से काम लेकर और शत्रुओं में परस्पर द्वेष भाव उत्पन्न करा के नेपाल के चारों राज्यों को उद्ध्वस्त कर दिया। इस प्रकार निष्कण्टक होकर आपने नेपाल का प्रभुत्व अपने ऊपर लिया और गोर्खा छोड़ कर काठमाण्डू को अपनी राजधानी बनाया। तब से नेवार जाति की प्रभुता की समाप्ति हो गई और गोर्खा लोग नेपाल के राजा हुए। इन्हीं गोर्खाओं के वंशज अब तक वहाँ राज कर रहे हैं । 1768 ईसवी में पृथ्वीनारायण सिंह को नेपाल की गद्दी मिली। उनसे लेकर 1847 ईसवी तक इतने राजे नेपाल में हुए-पृथ्वीनारायण शाह, प्रतापसिंह शाह, रणबहादुर शाह, गीर्वाण युद्ध विक्रम शाह, राजेन्द्र विक्रम शाह और सुरेन्द्र विक्रम शाह । पृथ्वीनारायण शाह ने धीरे-धीरे किगती और लिम्बू लोगों का भी राज्य छीन लिया और रणबहादुर-शाह ने नेपाली राज्य को कुमाऊँ तक बढ़ाया। 1792 ईसवी में नेपालियों ने तिब्बत पर चढ़ाई की, पर चीन वालों ने उन्हें वहां से भगा दिया। इस