पृष्ठ:माधवराव सप्रे की कहानियाँ.djvu/२१

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टिप्पणी को प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है जो कि इस प्रकार है––

"हिन्दुस्तान के इतिहास में सुबुक्तगीन नाम का जो अत्यन्त प्रसिद्ध बादशाह हुआ, वही हमारा गरीब पथिक है। उसके लड़के महमूद गजनवी ने भारतवर्ष को मुसलमानों के आधीन किया। 'एक पथिक का स्वप्न' उस समय के ढर्रे पर चल रही कहानियों की पंक्ति में ही आती है और इसी अंक में उन्होंने निबन्धनुमा ढंग से 'सम्मान किसे कहते हैं' शीर्षक पर देशभक्ति से ओतप्रोत कथानकयुक्त कथा को प्रस्तुत किया जिसे 'नानी की कहानी' की प्रणाली या सपटबयानी या किस्सागोई कह सकते हैं।"

जून, १९०० में उन्होंने गोल्डस्मिथ के आधार पर रची हुई एक शिक्षाप्रद कहानी की घोषणा की जिसमें 'आजम' शीर्षक कहानी लिखी, परन्तु सप्रेजी का कथाकार मौलिक कहानी के प्रस्तुतीकरण-हेतु निरंतर छटपटा रहा था और उनके कथाकार को पूर्ण संतुष्टि सन् १९०१ में 'एक टोकरी भर मिट्टी' लिखने के बाद मिली। इस विधा के प्रति सप्रेजी कितने जागरूक एवं प्रयत्नशील थे, सवा साल की कथायात्रा में उनके विभिन्न प्रयोग उनकी सही कहानी की तलाश को ही प्रमाणित करते हैं। यह बात भी अपना अलग महत्त्व रखती है कि 'एक टोकरी भर मिट्टी' लिखने के बाद सप्रेजी ने कोई भी कहानी नहीं लिखी। इससे हमारे कथन को ही पुष्टि मिलती है कि 'एक टोकरी मिट्टी' हिन्दी की प्रथम कहानी है।

क्योंकि लेखक का उस कहानी के बाद कहानी न लिखना 'एक टोकरी भर मिट्टी' को यही प्रमाणित करता है कि इसे उन्होंने परम लक्ष्य की प्राप्ति के रूप में निरूपित किया था।

श्री कमलेश्वर द्वारा सम्पादित 'सारिका' के 'प्रसंग' स्तम्भ में हिन्दी की प्रथम मौलिक कहानी के रूप में जब 'एक टोकरी भर मिट्टी' को मैंने प्रस्तुत किया, तब लगभग एक वर्ष तक उस पर निरन्तर चर्चा