पृष्ठ:मानसरोवर.djvu/९३

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राक्षस इस समय यहाँ क्या करने आया था। आपस में इशारे हुए। यह सलाह हुई कि इसे मिला लेना चाहिए। जगत सिंह उनका मुखिया था। आगे बढ़कर बोला, बाजबहादुर! सबेरे कैसे गए? हमने तो आज तुम लोगों के गले की फाँसी छुड़ा दी। लाल बहुत दिक किया करते थे, यह करो, वह करो। मगर यार देखो कहीं मुंशी जी से मत जड़ देना, नहीं तो लेने के देने पड़ जाएँगे।


जयराम ने कहा - कह क्या देंगे, अपने ही तो हैं, हमने जो कुछ किया है। वह सबके लिए किया है, केवल अपनी भलाई के लिए नहीं। चलो यार तुम्हें बाजार की सैर करा दें, मुँह मीठा करा दें।


बाजबहादुर ने कहा - नहीं, मुझे आज घर पर पाठ याद करने का अवकाश नहीं मिला। यहीं बैठकर पढूँगा।


जगतसिंह - अच्छा मुंशी जी से कहोगे तो न?


बाजबहादुर - मैं स्वयं कुछ न कहूँगा, लेकिन उन्होंने मुझसे पूछा तो?


जगतसिंह - कह देना मुझे नहीं मालूम।


बाजबहादुर - यह झूठ मुझसे न बोला जाएगा।


जयराम - अगर तुमने चुगली खाई और हमारे ऊपर मार पड़ी तो हम तुम्हें पीटे बिना न छोड़ेगे।


बाजबहादुर - हमने कह दिया कि चुगली न खाएंगे, लेकिन मुंशी जी ने पूछा तो झूठ भी न बोलेंगे।


जयराम - तो हम तुम्हारी हइडियाँ भी तोड़ देंगे।


बाजबहादुर - इसका तुम्हें अधिकार है।