पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/११०

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तेतर १०९ , लड़के को उत्सुकता न मानी। सौर के द्वार पर जाकर खड़ा हो गया और बोला-अम्मा, जरा बच्चो को मुझे दिखा दो। दाई ने कहा-बच्ची अभी सोती है। बालक-शारा दिखा दो, गोद में लेकर । दाई ने कन्या उसे दिखा दो तो वहाँ से दौड़ता हुआ अपने छोटे भाइयों के पास पहुंचा और उन्हें जगा-जगाकर खुशखबरी सुनाई। एक बोला- नन्ही-सो होगी। बड़ा -बिलकुल नन्ही-सी । बस जैसी बड़ी गुड़िया। ऐसी गोरी है कि क्या किसी साहय की लड़की होगी। यह लड़की मैं लूंगा। सबसे छोटा बोला-अमको पो दिका दो। सोनों मिलर लड़की को देखने आये और वहां से बनले बजाते, उछलते. कूदते बाहर आये। षड़ा-देखा कैसी है? मलमा-कैसी आँखें मन्द किये पड़ी थी। छोटा--इसे अमें तो देना। बड़ा-खूब द्वार पर वरात मायेगी, हाथी, घोड़े, बाजे, आतशबाजी । माला और छोटा ऐसे मग्न हो रहे थे मानों वह मनोहर दृश्य आँखों के सामने है, उनके सरल नेत्र सनोलास से चमक रहे थे। माला बोला-फुलवारियां भी होगी। छोटा-अस गी फूल लेंगे! ( २ ) हट्ठी भी हुई, वरही भी हुई, गाना बजाना, खाना खिलाना, देना-दिलाना सब कुछ हुआ, पर रस्म पूरी करने के लिए, दिल से नहीं, खुशी से नहीं। लड़की दिन-दिन दुर्बल और अस्वस्थ होती जाती थी। मां उसे दोनों वक्त अफ्रोम खिला देतो और पालिका दिन और रात नधो में बेहोश पड़ी रहती। ज़रा भी नशा उतरता तो भूख से विकल होकर रोने लगती। मां कुछ ऊपरी पूध पिलाकर फिर अफ्रोम खिला देती। आश्चर्य की बात तो यह थी कि अपकी उसकी छाती में दूध ही नहीं उतरा। यो भो से दूध देर में उतरता था, पर लड़कों की बेर उसे नाना प्रकार की दृधवर्द्धक .