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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१२४

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नेराश्य १२३ सास- अबको सात ब्राह्मणों को जिमाओ। देखें, कैसे महात्माजी की बात नहीं पूरी होतो । घमण्डीलाल-व्यर्थ है, इनके दिये कुछ न होगा। सुळेशी-बावूजी, आप विद्वान्, समझदार होकर इतना दिल छोटा करते हैं । अभी आपकी उन्न ही क्या है। कितने पुत्र लीजिएगा ? नामों दम न हो जाय तो कहिएगा। -बेटो, पूध-पूत से भी किसी का मन भरा है ? मुकेशी-ईश्वर ने चाहा तो आप लोगों का मन भर जायगा। मेरा तो भर गया। घमण्डीलाल-सुनती हो महारानी, अनी कोई गोलमाल मत करना। अपनी भाभी से सब ब्योरा अच्छी तरह पूछ लेना। सुकेशो- आप निश्चिन्त रहें, मैं याद करा दूंगी ; क्या भोजन करना होगा, कैसे रहना होगा, कैसे स्नान करना होगा, यह सब लिखा दूंगी और अम्माजी, आज के अठारह मास बाद आपसे कोई भारी इनाम लूंगो ! सुकेशो एक सप्ताह यहां रही और निरुपमा को खूब सिखा पढ़ाकर चली गई। (५) निरुपमा का एकचाल फिर चमका, घमण्डीलाल अवको इतने आश्वासित हुए कि भविष्य ने भूत को भुला दिया। निरुपमा फिर बाँदी से रानी हुई, सास फिर उसे पान की तरह फेरने लगी, लोग उसका मुंह लोहने लगे। दिन गुजरने लगे, निरुपमा कभी कहती, अम्माजी, आज मैंने स्वप्न देखा कि एक वृद्धा स्त्री ने आकर मुझे पुकारा और एक नारियल देकर बोली-~-यह तुम्हें दिये जाती हूँ, कभी कहती, अम्माजी अवको न जाने यो मेरे दिल में बड़ी-बड़ी उममें पैदा हो रही हैं, जी चाहता है, खूब गाना सुनूं, नदी में खूप स्नान कर, हरदम नशा-सा छाया रहता है । सास सुनकर मुस्करातो और बहती-यहू, ये शुभ लक्षण है। निरुपमा चुपके-चुपके माजूम मंगाकर खाती और अपने अलय नेत्रों से ताकवे हुए घमण्डीलाल से पूछती-- मेरी आखें लाल हैं क्या ? घमण्डीलाल खुश होकर कहते- मालूम होता है, नशा चढ़ा हुआ है । ये शुभ लक्षण हैं। निरुपमा को सुगन्धों से भी इतना प्रेम न था, फूलों के गजरों पर भष् वह जान देती थी।