पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१३

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विश्वास

आपटे ने मिस जोशी की ओर अपने सदय, सजल, सरस नेत्रों से देखकर कहा-बाईजी, मैं गवार और अशिष्ट प्राणी हूँ; लेकिन नारी-जाति के लिए मेरे हृदय में जो आदर है, वह उस श्रद्धा से कम नहीं है, जो मुझे देवताओं पर है। मैंने अपनी माता का सुख नहीं देखा, यह भी नहीं जानता कि मेरा पिता कौन था; किंतु जिस देवी के दयावृक्ष की छाया में मेरा पालन पोषण हुआ उसडी प्रेम-मूर्ति आज तक मेरी आँखों के सामने है और नारी-जाति के प्रति मेरो भक्ति को सजीव रखे हुए है। उन शब्दों को मुंह से निकालने के लिए अत्यन्त दु खो और लज्जित हूँ जो आवेश में निकल गये, और मैं भाज ही समाचार-पत्रों में खेद प्रकट करके आपसे -क्षमा की प्रार्थना करूँगा।

मिस जोशी को अब तक अधिकांया स्वार्थी मादमियों हो से साविका पड़ा था, जिनके चिकने-चुपड़े शब्दों में मतलब छिपा होता था । सापटे के सरल विश्वास पर उसका चित्त मानन्द से गद्गद हो गया। शायद वह गंगा में खड़ी होकर अपने अन्य मित्रों से यह बात कहती तो उसके फैशनेबुल मिलनेवालों में से किसी को उस पर विश्वास न आता। सब मुंह के सामने तो हाँ हाँ करते, पर द्वार के बाहर निकलते हो उसका मजाक उड़ाना शुरू करते। उन कपटी मित्रों के सम्मुख यह आदमी था जिसके एक-एक शब्द में सच्चाई झलक रही थी, जिसके शब्द उसके अंतस्तल से निकलते हुए मालूम होते थे।

आपटे उसे चुप देखकर किसी और हो चिन्ता में पड़े हुए थे। उन्हें भय हो -रहा था कि अब मैं चाहे कितनी क्षमा मागू, मिस जोशी के सामने कितनी सफाइयाँ पेश करूँ, मेरे आक्षेपों का असर कभी न मिटेगा।

इस भाव ने अज्ञात रूप से उन्हें अपने विषय को वह गुप्त पाते कहने को प्रेरणा -को जो उन्हें उसकी दृष्टि में लघु बना दें, जिससे वह भी उन्हें नीच समझने लगे, उसको संतोष हो जाय कि यह भी कलुषित आत्मा है । वोले-मैं जन्म से अभागा हूँ। माता पिता का तो मुंह ही देखना नसीब न हुआ, जिस दयाशोला महिला ने मुझे आश्रय दिया था वह भी मुझे १३ वर्ष की अवस्था में अनाथ छोड़कर परलोक सिधार -गई, उस समय मेरे सिर पर जो कुछ बीती उसे याद करके इतनी लज्जा आती है कि किसी को मुंह न दिखाऊँ । मैंने धोबी का काम किया, मोची का काम किया, घोड़े की साईसी को, एक होटल में बरतन मांजता रहा ; यहाँ तक कि कितनी हो बार