पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१९०

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$ दीक्षा १८९ मेरे सामने खड़ा कर दिया। मैं भी उठकर खड़ा हो गया। उस समय यदि कोई मेरे । हृदय को चीरता, तो रक्त को एक बूंद भो न निकलती ! साहब ने मुझसे पूछा-~वेल बकोल साहय, तुम शराम पोता है? मैं इनकार न कर सका। 'तुमने रात शराम पो थी ? मैं इनकार न कर सका। 'तुमने मेरे इस खानसामा से शराब ली थी ?' मैं इनकार न कर सका। 'तुमने रात को शराब पीकर घोतल और गिलास अपने सिर के नीचे छिपा रखा था? मैं इनकार न कर सका । मुझे भय था कि खानसामा न छहों खुल पड़े। पर उलटे में ही खुल पड़ा। 'तुम जानता है, यह चोरी है?' मैं इनझार न कर सका। 'हम तुमको मुअत्तल कर सकता है, तुम्हारा सनए छोन सकता है, तुमको जेल भेज सकता है। यथार्थ ही था। 'हम तुमको ठोकरों से मारकर गिरा सकता है । हमारा कुछ नहीं हो सकता।' यथार्थ हो था। 'तुम काला आदमी वकील बनता है, हमारे खानसामा से चोरी का शराब लेता है। तुम सुअर ! लेकिन हम तुमको वहो सका देगा, जो तुम पसद करे। तुम क्या- . चाहता है । मैंने कांपते हुए कहा- हुजूर, मुआफो चाहता हूँ। 'नहीं, हम सजा पूछता है । 'जो हुजूर मुनासिब समा।' 'अच्छा, यहो होगा।' यह कहकर उस निर्दयों, नर-पिशाच ने दो सिपाहियों को बुलाया और उनके मेरे दोनों हाथ पकरवा दिये । मैं मौन धारण किये इस तरह घिर झुकाये खड़ा रहा, 2