यह पृष्ठ शोधित नही है
दुर्दशा की कथा कहता था। हां, चालाको यह को कि उसमें कुछ थोड़ा-सा अपनो
तरफ से पढ़ा दिया, अर्थात् रात को जम मुझे नशा चढ़ा तो मैं वोतल और गिलास
लिये साहम के कमरे में घुस गया था और उसे कुरसी से पटभर खूप मारा था ।
इस क्षेप से मेरी दलित, अपमानित, मर्दित आत्मा को थोड़ी-सी तस्कोन होतो थी।
दिल पर तो जो कुछ गुणी, वह दिल ही जानता है।
सबसे घना भय मुझे यह हा कि कहीं यह बात मेरी पत्नी के कानों तक
पहुंचे, नहीं तो उन्हें अक्षा दुःस होगा। मालूम नहीं, उन्होंने सुना या नहीं ; पर
कभी मुझसे इसकी चर्चा नहीं की।
.