गुरु मन्त्र २०९ यह सुनते हो साधुजन ने चिन्तामणि का सादर अभिवादन किया । तत्क्षण गांजे को चिलम भरो गई और उसे सुजगाने का भार पण्डितजी पर पड़ा। बेचारे बड़े असमंजस में पड़े । सोचा, अगर चिलम नहीं लेता तो अभी सारो कलई खुल जायगी। विवश होकर चितम ले लो ; किन्तु जिसने भी गाँजा न पिया हो, वह बहुत चेला करने पर भी दम नहीं लगा सकता। उन्होंने भाँखें बन्द करके अपनी समझ में तो बड़े शोर से हम लगाया, चिलम हाथ से छुटकर गिर पड़ो, आँखें निकल भाई, मुह से फिचकर निकल आया, मगर न तो मुँह से धुएँ के बाद निकले, न चिलम हो सुलगो। उनका यह कच्चापन उन्हें साधु समाज से च्युत करने के लिए काझो था। दो-तीन साधु मलाकर आगे पड़े और बड़ी निर्दयता से उनका हाथ पड़कर उठा दिया। एक महात्मा-तेरे को धिक्कार है। दुसरे महात्मा-तेरे को लाज नहीं आतो ! साधु बना है मूर्ख ! पंडितजो लजित होकर समीप के एक हलवाई को दूसान के सामने जा धैठे और साधु समाज ने खजड़ी बजा-बनाकर यह भजन गाना शुरू किया- माया है संसार बलिया, माया है संसार , धर्माधर्म सभी कुछ मिथ्या, यही ज्ञान व्यवहार, सँवलिया माया है ससार गॉजे, भंग को वर्जित करते हैं उनपर धिक्कार , सँवलिया माया है संसार ।
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२१०
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