सौभाग्य के कोड़े
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उसके लिए अपने बँगले में दो कमरे मला कर दिये थे, एक पढ़ने के लिए दूसरा
सोने के लिए। लोग कहते हैं, लाड़ प्यार से बच्चे जिद्दो और शरीर हो जाते हैं।
रत्ना इतने लाल-प्यार पर भी बड़ी सुशोला बालिका थो। किसी नौकर को 'रे' न
सुकारतो, किसी भिखारी तक को न दुत्कारतो । नथुत्रा को वह पैसे, मिठाइयाँ दे दिया
करतो थी। कभी-कभी उससे, बातें भी किया करती थी। इससे वह लौंडा उसके मुंह
,
ला गया था।
एक दिन नथुदा रत्ना के सोने के कमरे में झाडू लगा रहा था। रत्ना दूसरे
कमरे में मेमसाहब से अंगरेजी पढ़ रही थी। नथुवा को शामत जो आई तो झाडू
लगाते-लगाते उसके मन में यह इच्छा हुई कि रत्ना के पलंग पर सोऊँ, कैसो उजली
चादर बिछी हुई है, गद्दा कितना नरम और मोटा है, कैसा सुन्दा दुशाला है । रत्ना
इस गद्दे पर कितने आराम से सोती है, जैसे चिड़िया के बच्चे घोस में । तभी तो
रत्ना के हाथ इतने गोरे और कोमल हैं, मालूम होता है, देह में रुई भरी हुई है ।
यहाँ कौन देखता है। यह सोचकर उसने पैर फर्श पर पोछे और चटपट पलंग पर
आकर लेट गया और दुशाला ओढ़ लिया। गर्व ओर आनन्द से उसका हृदय पुलकित
हो गया। वह मारे खुशी के दो-तीन बार पलग पर उछल पड़ा। उठे ऐसा मालूम
हो रहा था, मानों में रुई में लेटा हूँ, जिधर करवट लेता था, देह अंगुल भर नोचे
धंस जाती शो। यह स्वर्गीय सुख मुझे यहाँ नसीब । मुझे भगवान् ने रायसाहस का
चेटा क्यों न बनाया ? मुख का अनुभव होते हो उसे अपनी दशा का वास्तविक ज्ञान
हुआ और चित्त क्षुब्ध हो गया। एकाएक रायसाहब किसी ज़रूरत से कमरे में आये
तो नथुआ को ररना के पलग पर लेटे देखा। मारे क्रोध के जल उठे। बोले-श्यों
बे सुअर, तू यह क्या कर रहा है।
नथुवा ऐसा घबराया मानों नदी में पैर फिपल पड़े हों। चारपाई से कूदकर अलग
खड़ा हो गया और फिर झाडू हाथ में ले ली।
रायसाहब ने फिर पूछा-यह क्या कर रहा था, बे ?
नथुवा-कुछ तो नहीं सरकार ।
रायसाहप-अप तेरी इतनी हिम्मत हो गई है कि रत्ना की चारपाई पर सोये ?
नमकहराम कहीं का ! लाना मेरा हन्टर ।
हन्टर मँगवाकर रायसाहब ने नथुवा को खूप पोटा । बेवारा हाथ जोड़ता था
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२१२
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