पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२१४

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सौभाग्य के कोड़े नथुवा -कहीं नहीं। मेम-रायसाहब के यहाँ फिर जायगा तो वह मारेंगे । क्यों नहीं मेरे साथ चलता। मिशन में आराम से रह ! आदमी हो जायगा। नथुवा-किरस्तान तो न वनाओगी? मेम-किरस्तान क्या भगो से भी बुरा है, पागल ? नथुवा -न भैया, किरस्तान न बनूंगा। मेम.--तेरा जो न चाहे न बनना, कोई ज़बरदस्तो थोड़े ही बना देगा । नथुला थोड़ी देर टमटम के साथ चला पर उसके मन में संशय बना हुआ था । सहसा उतर गया । मेमसाहया ने पूछा-क्यों, चलता क्यों नहीं ? नथुवा-मैंने सुना है, मिशन में जो कोई नाता है, किरस्तान हो जाता है । मैं न जाऊंगा । आप मासा देती हैं। मेम-अरे पागल, यहाँ तुझे पढ़ाया जायगा, किसी को चाकरो न करनी पड़ेगी। शाम को खेलने को छुट्टी मिलेगी । कोट पतलून पहनने को मिलेगा। चक के दो-चार दिन देख तो ले। नथुवा ने इस प्रलोभन 7 उत्तर न दिया। एक गली से होकर भागा । जब टमटम पर निकल गया तो वह निश्चिन्त होकर सोचने लगा-कहाँ जाऊँ ? वहीं कोई सिपाही पड़कर थाने न ले जाय । मेरो विरादरी के लोग तो वहीं रहते हैं। क्या वह मुझे अपने घर न रखेंगे। कौन बैठकर खाऊँगा, काम तो करूंगा। पस, झिसो को पीठ पर रहना चाहिए। आज कोई मेरी पीठ पर होता तो मजाल थी कि रायसाहप मुझे यो मारते। सारी बिरादरो जमा हो जातो, घेर लेतो, घर को सफाई बन्द हो जातो, कोई द्वार पर झाडू तक न लगाता। सारी रायसाही निकळ जातो! यह निश्चय करके वह घूमता-घामता भगियों के मुहल्ले में पहुंचा। शाम हो गई थी, कई भगी एक पेड़ के नोचे चटाइयों पर बेठे शहनाई और तबला बना रहे थे। वह नित्य इसका अभ्यास करते थे। यह उनकी जोविछा थी। गान-विद्या को यहाँ जितनी छीछालेदर हुई है, उतनो और कहाँ न हुई होगी। नथुवा जाकर वहां खड़ा हो गया। उसे इहुत ध्यान से सुनते देखा एक भंगी ने पूछा- कुछ गाता है। नथुवा-अभी तो नहीं पाता , पर सिखा दोगे तो गाने लगूगा । .