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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२४३

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- 11 नईम को अपने भाग्य-निर्माण का स्वर्ण सुयोग प्राप्त हुआ। वह न त्यागी था, न शानी । सभी उसके चरित्र की दुर्बलता से परिचित थे, अगर कोई न जानता था, तो झुकाम लोग। भर साहम ने मुंह मांगो मुराद पाई। नईम जब विष्णुपुर पहुंचा, तो दरका बसामान्य आदर-सत्कार हुआ। भेटें चढ़ने लगी, अरदली के चपरासी, पेशकार, साईस, लायची, खिदमतगार, सभी के सुह तर और मुट्ठियां गरम होने लगी। ९ अर जाहब के हवाली मवाली शत-दिन धेरे रहते, मानौ दामाद ससुराल आया हो । एक दिन-प्रातःकाल कुँअर साहब को माता आवर नईम के सामने हाथ बांधकर खड़ी हो गई । नईम रेटा हुआ हुक्का पी रहा था । तप, खंयम और वैधव्य को यह खेजस्वी प्रतिमा देखकर उठ बैठा । हानी उसको भोर वात्सल्य पूर्ण लोचनों से देखती हुई बोली-हुजूर, मेरे बेटे प्ला पन आपके हाथ में है। भाप हो उसके भाग्य-विधाता हैं। आपको उसी माला को सौनंद है, जिसके मात्र सुयोग्य पुत्र है, मेरे लाल को, रक्षा नीजिएगा। मैं तन, मन, धन आपके चरणों पर अर्पण करतो हूँ। स्वार्थ से क्ष्या के संयोग से नई न को पूर्ण रीति से वशीभूत कर लिया। उन्हीं दिनों कैलास नईम से मिलने पाया। दोनो मिन बड़े तपाक से गळे , मिले । नईम ने बातों-बातों में वह सम्पूर्ण वृत्तान्त कह सुनाया, और फैलास पर अपने कृत्य का औचित्य सिद्ध करना चाहा। कैलास ने कहा- मेरे विचार में पाप सदैव पाप है, चाहे वह किसो आवरण में मंडित हो। नईम और मेरा विचार है कि अगर गुनाह से किसी की जान बचती हो, तो यह ऐन सवाब है । कुँअर साहस अभी नौजवान आदमी हैं। बहुत ही होनहार, बुद्धि- मान्, सदार और सहृदय हैं। आप उनसे मिले, तो खुश हो जायें । उनका स्वभाव एपलान्त दिनम्न है। मैनेजर जो यधार्थ में दुष्ट प्रकृति का मनुष्य था, बरबस कुंभर साहव को दिक किया करता था। यहां तक कि एक मोटरकार के लिए उसने रुपये म स्वीकार किये, न सिफारिश की। मैं यह नहीं कहता कि कुंभर साहब का यह कार्य स्तुत्य है, लेकिन बहस यह है कि उनको अपराधो सिद्ध करके उन्हें कालेपानी को हवा सिनाई जाय, या निरपराध सिद्ध करके उनकी प्राण-रक्षा की जाय। और भाई, ..