पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२५२

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डिक्री के रुपये २५१ दुःख यदी है कि हम जाति के लिए इससे अधिक बलिदान करने में समर्थ न हुए। इस लेख को आदि से अन्त मक सोचकर वह टी से उठा ही था कि किसो के पैरों की आहट मालूम हुई। गरदन उठाकर देखा, तो मिरला नईम था। वही हंसमुख चेहरा, वही मृदु मुसकान, वही कौशामय नेत्र । पाते हो कैलास के गले से लिपट गया। कैलास ने गरदन छुक्षते हुए कहा -क्या मेरे घाव पर नमक छिड़कने, मेरो लाश को पैरों से कराने आये हो ? नईम ने उसकी गरदन को और शोर से दवाकर कहा-और क्या, मुहब्बत के यदी तो मजे हैं। कैलास-मुम्ससे दिल्लगी न करो । भरा बैठा हूँ, मार थेगा। नईम को माखें सजल हो गई ? बोला-माह जालिम, मैं तेरी जान से यही कटु वाक्य सुनने के लिए तो विकल हो रहा था। जितना चाहे कोसो, खूब गालियाँ दो, मुझे इसमें मधुर सगीत का आनन्द आ रहा है। कलास-और, अभी जम अदालत का कुर्क-अमीन मेग घर-बार नौलाम करने भावेगा, तो क्या होगा ? मोलो, अपनी जान बचाकर तो अलग हो गये। नईम- हम दोनों मिलकर खूप तालियां बजावेंगे, और उसे पदर छी तरह नवावगे। कैलास-तुम अब पिटोगे मेरे हाथों से 1 ज़ालिम, तुझे मेरे बच्चों पर भी दया न भाई ? नईम-तुम भी तो चले मुन्सी से जोर आजमाने । कोई समय था, जब पालो तुम्हारे हाथ रहती थी। अब मेरी बारी है। तुमने मौका का-महल तो देखा नहीं, मुम्छ पर पिल पड़े। फैलास -सरासर सत्य की उपेक्षा करना मेरे सिद्धान्त के विरुद्ध था। नईम--और सत्य का गला घोटना मेरे सिद्धान्त के अनकूल । फैलास-अभी एक पूरा परिवार तुम्हारे गले मढ़ (गा, तो अपनी किस्मत को रोओगे । देखने में तुम्हारा आधा भी नहीं हूं, लेकिन सन्तानोत्पत्ति में तुम जैसे तीन पर भारी हूँ। पूरे सात हैं, कम न बेश ! नईम-अच्छा लाओ, कुछ खिलाते-पिलाते हो, या तकदीर का मरसिया ही गाने