मिरणा को बाज़ी कुछ कमोर थो । मोरसाहक उन्हें किश्त-पर किश्त दे रहे थे। इतने में कम्पनी के सैनिक आते हुए दिखाई दिये । यह गोरों को फ़ौज यो, जो लखनऊपर . अधिकार जमाने के लिए आ रही थी। मोरसाहम बोले-अंगरेजी फौज आ रही है। खुदा खैर करे। मिरजा-आने दीजिए, किश्त बचाइए । यह किश्त । मौर-घरा देखना चाहिए, यहाँ भाड़ में खड़े हो जायें । मिरजा-देख लीजिएगा, जल्दी क्या है, फिर किश्त ! मौर-तोपखाना भी है। कोई पांच हार आदमी होंगे। कैसे कैसे प्रवान हैं। लाल बन्दरों के से मुंह । सूरत देखटर खौफ मालम होता है। मिरजा-- अनाब, होले न कीजिए। ये चकमे किसी और को दीजिएगा। यह किश्त ! मीर-~भाप भी अजीब आदमी हैं। यहाँ तो शहर पर. माफ़त आई हुई है, और भापको किश्त की सूझी है। कुछ इसकी भी खबर है कि शहर घिर गया तो घर कसे चलेंगे? मिरजा-जब घर चलने का वक आवेगा, तो देखी पायपी-यह किश्त ! बस- अष की शह में मात है। फ्रोज निकल गई । दस बजे का समय था। फिर बाजी बिछ गई। मिरजा बोले-आज खाने की कैसे ठहरेगी ? मौर-अजो, आज तो रोका है । क्या आपको ज्यादा भूख मालूम होती है । मिरजा-जी नहीं । शहर में न जाने क्या हो रहा है। मीर-शहर में कुछ न हो रहा होगा। लोग खाना खा-खाकर आराम से सो रहे होंगे । हुजूर नवाब साहब भी ऐशगाह में होंगे। दोनों सज्जन फिर जो खेलने बैठे, तो तेन बन गये। अबकी मिरजाजी की बाजी कमजोर थी। चार का गभर बन ही रहा था कि फ्रोज की वापसी की आहट मिली। नवाब वाजिदअली पकड लिये गये थे, और सेना उन्हें किसी अज्ञात स्थान को रिये जा रही थी। शहर में न कोई हलचल थी, न मार-काट । एक बूंद भी न नहीं गिरा था। आज तक पिसी स्वाधीन देश के राजा को पराजय इतनो शांति से, इस तरह खून बहे बिना, न हुई होगी। यह वह महिंसा न थी, जिस पर देवगण ,
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