हार को भैप मिटाने के लिए उनकी दाद देते थे। पर ज्यों-ज्यों बाजी कमजोर
पड़ती थी, धैर्य हाथ से निकला जाता था। यहां तक कि वह बात-बात पर झुमलाने
लगे-जनाव, आप चाल बदला न कीजिए। यह क्या कि एक चाल चले, और फिर
उसे बदल दिया। जो कुछ चलना हो, एक बार चल लीजिए, यह आप मुहरे पर
हाथ क्यों रखते हैं ? मुहरे को छोड़ दीजिए ! जब तक आपको चाल न सूझे, मुहरा
छुहए ही नहीं। आप एक-एक चाल आध-आघ घण्टे में चलते हैं। इसको सनद
नहीं। जिसे एक चाल चलने में पांच मिनट से ज्यादा लगे, उसको मात समझो
जाय । फिर आपने चाल बदलो ! चुपके से मुहरा वहीं रख दीजिए।
मौरसासब का फरजो पिटता था। ओले-मैंने चाल चली ही कब थी ?
मिरजा- भाप चाल चल चुके हैं । मुहरा वहीं रख दीजिए-उसो घर में !
मौर-
-उस घर में क्यों रम् । मैंने हाथसे मुहश होता हो का था ?
मिरजा-मुहरा आप कयामत तक न छोड़ें, तो क्या चाली न होगी ? फ्रात्री
मिटते देखा, तो धांधली करने लगे।
मोर-धांधली भाप करते हैं। हार-जोत तकदोर से होती है; धांधली करने
से कोई नहीं जीतता?
मिरजा-तो इस बाजी में आपको मात हो गई।
मौर-मुझे क्यों मात होने लगी ?
मिरजा-ती आप मुहरा उसो घर में रख दोजिए, जहां पहले रक्खा था।
मोर-वहाँ क्यों रख १ नहीं रखता!
मिरजा-
-वयों न रखिएगा? आपको रखना होगा !
तकरार बढ़ने लगी। दोनों अपनी-अपनी टेक पर अड़े थे। न यह दबता था, न
वह 1 अप्रासंगिक बातें होने लगी। मिरजा योले-किसी ने खानदान में शतरंज
खेली होती, तब तो इसके कायदे जानते। वे तो हमेशा घास छोला किये, आप
शतरंज क्या खेलिएगा। रियासत और ही चीज है। जागीर मिल जाने से हो कोई
रईस नहीं हो जाता।
मोर-क्या ! घास आपके अम्बाजान छोलते होंगे। यहाँ तो पोढ़ियों से
शतरंज खेलते चले आ रहे हैं।
मिरा-अजी, जाइए भी,
गाजिउदोन हैदर के यहाँ बावरची का काम
,
.
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२६५
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