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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२७०

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वज्रपात २६९ - यदि नादिर को होरा न मिला, तो वह न जाने दिल्लो पर क्या सितम ढावे। आह! उसको कल्पना ही से रोमाञ्च हो जाता है। खुदा न करे, दिल्ली को फिर यह दिन देखना पड़े। सहसा नादिर ने पूछा-मैं तुम्हारे जवाव का सुन्तजिर हूँ ? क्या यह तुम्हारो दया का काफी सबूत नहीं है। बीर-जहाँपनाह, वह होरा पादशाह सलामत को जान से ज्यादा भोज है। वह उसे हमेशा अपने पास रखते हैं। नादिर - झूठ मत बोलो -होरा वादशाह के लिए है, बादशाहो हीरा के लिए नहीं। बादशाह को होरा जान से ज्यादा अजोज है का मतलब सिर्फ इतना है कि वह बादशाह को बहुत अलोम है, और यह कोई वजह नहीं कि मैं उस हीरे को उनसे न लूं । अगर बादशाह यो न देंगे, तो मैं जानता हूँ कि मुझे क्या करना होगा। तुम जाकर इस मुआमिले में उसी नाजुझफहमी से काम लो, जो तुमने कूल दिखाई थी। माह, कितना ला-जवाब शेर था- कसे न माँद कि दीगर व तेगे नाज कुशो ; मगर कि जिन्दा कुनी खल रावलाज कुशी। ( ३ ) मन्त्री सोचता हुमा चला कि यह समस्या क्योंकर हल कर ? बादशाह के दीवानखाने में पहुंचा, तो देखा, बादशाह उनी होरे को हाथ में लिए चिन्ता में मग्न बेठे हुए हैं। बादशाह को इस वक इसी होरे को फिक्र थी। लुटे हुए पषिक की भांति वह अपनी यह लकड़ी हाथ से न देना चाहता था। वह जानता था कि नादिर को इस होरे की खबर है। वह यह भी जानता था कि खजाने में इसे न पाझर उसके क्रोध को सीमा न रहेगी। लेकिन, बछ जानते हुए भो, वह होरे को हाथ से न जाने देना चाहता था। अन्त को उसने निश्चय छिया, मैं इसे न दूंगा, चाहे मेरी जान हो पर क्यों न बन जाय । रोगी को इस अन्तिम सांस को न निकलने दंगा। हाय, कहाँ छिपाऊँ ? इतना बड़ा मकान है कि उसमें एक नगर समा सस्ता है, पर इस नन्हीं-सो चोज़ के लिए कहों जगह नहों, जैसे किसी अमागे को इतनी बड़ी दुनिया में भी कहीं पनाह नहीं मिलती। किसी सुरक्षित स्थान में न रखकर