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मानसरावर
काप्रेस के मुट्ठी भर आदमियों का कुछ ऐसा आतंक छाया हुआ था कि कोई इनको
सुनता ही न था। यहां तक कि पड़ोस की कुंजदिन ने भी निर्भय होकर कह दिया-
हुजूर, चाहे मार डालो, पर दुकान न खुलेगी! नाक न कटवाऊँगी। सबसे बड़ी चिंता
यह थी कि कहीं पण्डाल बनानेवाले मजदूर, बढ़ई, लोहार वगैरह काम न छोड़ दें।
नहीं तो अनर्थ ही हो जायगा। राय साहब ने कहा- हुजूर, दूसरे शहरों से दूकान-
दार बुलवावें, और एक बाजार अलग खोलें।
खां साहब ने फरमाया-वक इतना कम रह गया है कि दूसरा बाजार तैयार
नहीं हो सकता। हुजूर वाप्र सवालों को गिरफ्तार कर लें, या उनकी जायदाद पन्त
कर लें, फिर देखिए, के काबू में नहीं आते ! राजा साहब बोले-पकद-धकड़ से
तो लोग और मलायेंगे। कांग्रेसवालों से हुजूर कहें कि तुम हड्ताल बन्द करा दो,
तो सबको सहकारी नौयारी दे दी जायगी। उसमें अधिकांश बेकार लोग भरे पड़े हैं,
यह प्रलोभन पाते ही फूल उठेंगे।
मगर मैजिस्ट्रेट को कोई राय न जंची। यहां तक कि वायसराय के आने में
तीन दिन और रह गये।
३
आखिर राजा साहब को एक युक्ति सुन्सी । क्यों न हम लोग भी नैतिक बल का
प्रयोग करें ? आखिर कांग्रेसवाले धर्म और नीति के नाम पर हो तो यह तूमार पाँधते
हैं। हम लोग भी उन्हों का अनुकरण करें, शेर को उसके माद में पछाई । कोई ऐसा
आदमी पैदा करना चाहिए, जो व्रत करे कि दुकानें न खुली, तो मैं प्राण दे दंगा।
यह ज़रूरी है कि वह ब्राह्मण हो, और ऐसा, जिसको शहर के लोग मानते हो, आपर
करते हों। अन्य सहयोगियों के मन में भी यह वात बैठ गई। उछल पड़े। राय
साहब ने कहा-बस, अब पड़ाव मार लिया। अच्छा, ऐसा कौन पण्डित है, पति
पदाधर शर्मा !
राजा- जो नहीं, उसे कौन मानता है ! साली समाचार-पत्रों में लिखा करता
है। शहर के लोग उसे क्या जान ?
राय साहब-दममी ओमा तो है इस ढा का?
राजा-जो नहीं, कालेज के विद्यार्थियों के सिवा उसे और कौन जानता है।
राब साहब-पण्डित मोटेराम शास्त्रो ?
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२७७
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