पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/३०२

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माइ का टट्टू यशवत- स्त्री-अपने पति के लिए एक वकील । यशवंत-तुम्हारा पति कौन है ? स्त्री-वही जो आपके साथ पढ़ता था, और जिस पर डाके का झूठा अभियोग. चलाया जानेवाला है? यशवंत ने चौंककर पूछा-तुम रमेश को स्त्री हो ? स्त्री-हाँ। यशवंत-मैं सनको वकालत नहीं कर सकता। स्त्री-आपको अख्तियार है। आप अपने जिले के भादमी है, और मेरे पति के मित्र भी रह चुके हैं । इसलिए सोचा था, क्यों बाहरवालों को बुलाऊँ । मगर अब इलाहाबाद या कलकत्त से ही किसी को बुलाऊँगी। यशवत-मिहनताना दे सकोगी ? स्त्री ने अभिमान के साथ कहा-बड़े-से-बड़े वकील का मिहनताना क्या होता है? तोन हजार रुपये रोज़! स्त्री -बस ! आप इस मुकदमे को ले लें, मैं आपको तीन हजार रुपये रोज ,गो। यशवंत-तीन हजार रुपये रोखा स्त्री-हाँ, और यदि आपने उन्हें छुड़ा लिया, तो पचास हजार रुपये भापको इनाम के तौर पर और देंगी। यशवत के मुंह में पानी भर आया । भगर मुकदमा दो महीने भी चला, तो कम. से-कम एक लाख रुपये पौधे हो जायेंगे। पुरस्कार ऊपर से। पूरे दो लाख को गोटी है । इतना धन तो जिंदगी भर में भी न जमा कर पाये थे। मगर दुनिया क्या कहेगी ? अपनी आत्मा भी तो नहीं गवाही देतो। ऐसे आदमो को कानून के पंजे से बचाना असंख्य प्राणियों को हत्या करना है। लेकिन गोटी दो लाख को है। कुछ रमेश के फंस जाने से इस अत्ये का मत तो हुआ नहीं जाता। उसके चेले चापड़ तो रहेंगे हो। शायद वे अब और भी उपद्रव मवावें । फिर में दो लाख को गोटो क्यों माने दूं। लेकिन मुझे कहीं मुंह दिखाने की जगह न रहेगी ! न सहो । जिसका जो चाहे, खुश हो, जिसका जो चाहे, नाराय। ये दो लाख तो नहीं छोड़े जाते । कुछ में किसोका गला तो दबाता नहीं, चोरी तो करता नहीं। अपराधियों की रक्षा करना। तो मेरा काम ही है।