पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/३२३

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गारघर- मान लेकर बह चाटेगी ? पहले रुपयों को फिक्र करो। वह विना दिन मानेगी। नईम-भाई चक्रधर, खुदा के लिए इस वफ दिल न छोरा करो, नहीं तो हम तीनों की मिट्टी खराब होगी। जो कुछ हुमा उसे मुभाफ करो, अब फिर ऐसी खता न होगी। चक्रधर-ह, यहो, न होगा, निकाल दिया जाऊँगा। दूकान खोल दूंगा। तुमारी तो मिट्टी खराब होगी । इस शरारत का मजा चखोगे। मोह। कैसा चकमा दिया है! बहुत खुशामद और चिौरी के बाद देवता सौधे हुए । 'प्रातःकाल नाम लूपी के बंगले पर पहुंचे। वहां मालूम हुआ कि वह प्रिसिपल के बंगले पर गई है। अब काटो, तो बदन में लह नहीं । मामलो, तुम्ही मुश्किल को आसान करनेवाले हो, अब मान की सैर नहीं । प्रिंसिपल ने सुना, तो क्या हो खा जायगा, नमक तक न मांगेगा। इस कंवरूत पण्डित को पदोस्त अनाव में जान फॅसी। इस बेहुदे को सुमो क्या? चला माननीन से इश्क मताने । वन-विकाव की-सी तो आपको सूरत है, और रून्त यह कि यह माहरू मुझ पर रोक गई ! हमें भी अपने साथ डुबोये देता है। कहीं लूसी से रास्ते में मुलाकात हो गई, तो शायद भारजू-मिन्नत करने से मान जाय। लेकिन को वहां पहुंच चुकी है तो फिर कोई उम्मीद नहीं। वह, फिर पैरगावी पर पेठे, और बेतहाशा प्रिसिपल के बंगले की तरफ भागे। ऐसे तेज पा रहे थे, मानों पीछे मोत भा रही है। प्रा-सी ठोकर लगती, तो हड्डी पसली चूर-चूर हो जाती । पर शोक ! कहाँ रूसी का पता नहीं । भाषा रास्ता निकल गया, और लूसी को गर्द तक न नगर भाई । नैराश्य ने गति को मद कर दिया। फिर हिम्मत करके चले। गले के द्वार पर भी मिल गई, सो बान बच बायगी । सहसा रूसी दिखाई दी, नईम ने पैरों को भौर मो तेज चलाना शुरू किया। यह सिपल के गले के दरवाजे पर पहुंच चुकी थी। एक सेकर में पारा न्यारा होता था, नाव इयती भी या पार जाती थी। इदय उठल- हलकर कठ तक भा रहा था। ओर से पुकारा-मिस'टरनर, हेलो मिस टरनर, बरा ठहर बाभो। सूसी ने पीछे फिरकर देखा, नईम को पहचानकर ठहर गई, और योको मुमसे इस पण्डित की सिप्रारिश करने तो नहीं भावो में प्रिसिपल से उसकी शिकायत करने जा रही हूँ। ।