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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/५५

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नागमसमर ? मेरे घर में किस बात की कमी है । मुझे इसकी क्या चिन्ता है कि स्वायेंगे क्या, पहनेंगे क्या ? मुझे जिस चीज को रूरत होगी, बाबूजो तुरन्त ला देंगे, अम्मा से जो चौत मागूगी वह तुरंत दे देंगी। फिर रोऊँ क्यों ! वह अपनी मां को रोते देखतो तो रोती, पति के शोक से नहीं, मां के प्रेम से | कभी सोचती, शायद यह लोग इसलिए रोते हैं कि वही में कोई ऐसी चीज न मांग हूँ जिसे वह दे न सके। तो मैं ऐसी चीज़ मागूगो ही क्यों ? मैं अब भी तो उनसे कुछ नहीं मांगती, वह आप ही मेरे लिए एक-न-एक चीज नित्य लाते रहते हैं। क्या मैं अब कुछ और हो जाऊँगी ? इधर माता का यह हाल था कि बेटी को सूरत देखते ही भांखों से आंसू की झड़ी ला भाती । बाप की दशा और भी करुणाजनक थी। घर में आना-जाना छोड़ दिया। सिर पर हाथ धरे कमरे में अकेले उदास बैठे रहते । उसे विशेष दुःख इस बात का था कि सहेलियां भी अब उसके साथ खेलने न पाती। उसने उनके घर जाने की माता से भाज्ञा मांगी तो वह फूट-फूटकर रोने लगी। माता-पिता की यह दशा देखी तो उसने के सामने आना छोड़ दिया, बैठी किस्से-कहानियाँ पढ़ा करती। उसकी एकान्त- प्रियता का मां-बाप ने कुछ और ही भर्थ स्ममा । लड़की शोक के मारे घुली जाती है, इस वज्राघात ने उसके हृदय को टुकड़े-टुकड़े कर डाला है । एक दिन हृदयनाथ ने बागेश्वरी से कहा-जी चाहता है, घर छोड़कर कहीं भाग माऊँ । इसका इष्ट अब नहीं देखा जाता! भागेश्वरी-मेरी तो भगवान् से यही प्रार्थना है कि मुझे संसार से उठा लें। कहाँ तक छाती पर पत्थर की सिक रखें। हृदयनाथ-किसी भांति इसका मन बहलाना चाहिए, जिसमें शोकमय विचार भाने ही न पाई। हम लोगों को दुःखी और रोते देखकर उसका दुःख और भी दारुण हो जाता है। बागेश्वरी -मेरी तो बुद्धि कुछ काम नहीं करती। रदयनाथ-हम लोग याँही मातम करते रहे तो लड़की की जान पर बन आयगी। अब कभी-कभी उसे लेकर सैर करने चली जाया करो। कभी-कभी थिएटर दिखा दिया कभी घर में गाना-बाना करा दिया। इन बातों से उसका दिल बहलता रहेगा। बागेश्वरी-मैं तो उसे देखते ही रो पड़ती हूँ। लेकिन अब अन्त कांगो। तुम्हारा विचार बहुत मच्छा है। दिना दिस-बहलाव के उसका शोक न दर होगा।