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घर आई। मगर अभी स्नान भी न करने पाई थी कि आदमी पहुंचा-जल्द चलिए,
कडको रो-रोकर जान दे रही है।
हृदयनाथ ने कहा-कह दो, अस्पताल से कोई नर्स
बुला
कैलासकुमारी-दावा, आप व्यर्थ में झुंमलाते हैं। उस बेचारी को बान बच
आये, मैं तीन दिन नहीं, तीन महीने उसकी सेवा करने को तैयार हूँ। आखिर यह
देह किस दिन काम भायेगी।
हृदयनाथ-तो और कन्याएँ कैसे पढ़ेगी ?
केलासो-दो-एक दिन में वह अच्छी हो जायगी, दाने मुरझाने लगे हैं,
तक आप जरा इन लड़कियों को देख-भाल करते रहिएगा।
हृदयनाथ- यह बीमारी छत से फैलती है।
कैलासी-(हँसकर ) मर जाऊँगी तो आपके सिर से एक विपत्ति टल जायगी!
- यह कहकर उसने उधर की राह ली । भोजन की थाली परसौ रह गई।
तब हृदयनाथ ने जागेश्वरी से कहा -जान पड़ता है, बहुत जल्द यह पाठशाला
-भी बन्द करनी पड़ेगी।
जागेश्वरी-विना मांझी के नाव पार लगाना कठिन है। जिधर हवा पाती है,
उधर ही वह जाती है।
हृदयनाथ- जो रास्ता निकालता हूँ वही कुछ दिनों के बाद किसी दलदल में फंसा
देता है । अब फिर बदनामी के सामान होते नजर आ रहे हैं । लोग कहेंगे, लड़की
दसरों के घर जाती है और कई-कई दिन पड़ी रहती है। क्या करू, कह दें, लक-
"कियों को न पढ़ाया करो।
जागेश्वरी-इसके सिवा और हो हो क्या सकता है ?
कैलासकुमारी दो दिन के बाद लौटी तो हृदयनाथ ने पाठशाला बन्द कर देने की
समस्या उसके सामने रखी। कैलासी ने तीव्र स्वर से कहा-अगर आपको बदनामी
का इतना भय है तो मुझे विष दे दीजिए। इसके सिवा बदनामी से बचने का और
कोई उपाय नहीं है।
हृदयनाथ-बेटी, संसार में रहकर तो संसार को-सौ करनी ही पड़ेगी।
कैलासो-तो कुछ मालूम भी तो हो कि संसार मुझसे क्या चाहता है । मुझमें
जीव है, चेतना है, जड़ क्योंकर बन जाऊँ। मुझसे यह नहीं हो सकता कि अपने
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/६३
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