सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ३ )

एकाएक सशस्त्र सिपाहियों के दल में हलचल पड़ गई। उनका अफ़सर हुक्म दे रहा था-सभा भज कर दो, नेताओं को पकड़ लो, कोई न जाने पाये। यह विद्रोहात्मक व्याख्यान है।

मिस्टर बौहरी ने पुळीस के अफसर को इशारे से बुलाकर कहा-और किसी को गिरफ्तार करने की ज़रूरत नहीं । आपटे हो को पकड़ो। वही हमारा शत्रु

पुलोस ने डडे चलाने शुरू किये और कई सिपाहियों के साथ जाकर अफसर ने आपटे को गिरफ्तार कर लिया।

जनता ने त्योरियां पदलों। अपने प्यारे नेता को यो गिरफ्तार होते देखकर उनका धैर्य हाथ ले जाता रहा।

लेकिन उसी वक्त आपटे की ललकार सुनाई दो-तुमने अहिंसावत लिया है और अगर किसी ने उस व्रत को तोड़ा तो उसका दोष मेरे सिर होगा। मैं तुमसे सविनय अनुरोध करता हूँ कि अपने-अपने घर जाओ। अधिकारियों ने वही किया मो हम समझे थे। इस सभा से हमारा जो उद्देश्य था वह पूरा हो गया। हम यहाँ बलवा करने नहीं, लेवल संसार की नैतिक सहानुभूति प्राप्त करने के लिए जमा हुए थे, और हमारा उद्देश्य पूरा हो गया ।

एक क्षण में सभा भङ्ग हो गई और आपटे पुलीस की हवालात में भेज दिये गये।

( ४ )

मिस्टर जौहरी ने कहा-बचा बहुत दिनों के बाद पजे में आये हैं । राज-द्रोह का मुकदमा चलाकर कम-से-कम १० साल के लिए अडमन भेजूंगा।

मिस जोशी-इससे क्या फायदा ?

'क्यों ? उसको अपने किये की सजा मिल जायगी।'

- लेकिन सोचिए, हमें उसका कितना मूल्य देना पड़ेगा? अभी जिस बात को गिने-गिनाये लोग जानते हैं, वह सारे संसार में फैलेगी भोर हम कहीं मुंह दिखाने लायक न रहेंगे। आप अखबारों के संवाददाताओं की प्रमान तो नहीं बन्द कर सकते।'

'कुछ भी हो, मैं इसे जेल में सड़ाना चाहता हूँ। कुछ दिनों के लिए तो चैन की