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और इसलिए मैं अपने को उस प्रस्ताव से बंधा हुआ पाता हूँ। मैं उसे तोड़ना भो
चाहूँ तो आत्मा न तोड़ने देगी। मैं सत्य कहता हूँ, यह रुपये ले लूँ तो मुझे इतनो
मानसिक वेदना होगी कि शायद मैं इस आघात से च हो न सकूँ ।।
पांचवे-अब की Conference आपको सभापति न बनाये तो उसका घोर
अन्याय है।
यशोदानन्द-मैंने अपनी Duty' कर दो, उसका recognition' हो
या न हो, मुझे इसकी परवा नहीं।
इतने में खबर हुई कि महाशय स्वामीदयाल आ पहुँचे। लोग उनका अभिवादन
करने को तैयार हुए। उन्हें मसनद पर ला बैठाया और तिलक का संस्कार आरम्भ
हो गया। स्वामी दयाल ने एक ढाक के पत्तल में एक नारियल, सुपारी, चावल, पान
आदि वस्तुएँ वर के सामने रखों। ब्राह्मणों ने मन्त्र पढे, हवन हुआ और वर के
माथे पर तिलक लगा दिया गया। तुरन्त घर को स्त्रियों ने मंगलाचरण गाना शुरू
किया। यहाँ महफ़िल में महाशय यशोदानन्द ने एक चौकी पर खड़े होकर दहेज को
कुप्रथा पर व्याख्यान देना शुरू किया। व्याख्यान पहले से लिखकर तैयार कर लिया
गया था। उन्होंने दहेज को ऐतिहासिक व्याख्या को थी । पूर्वकाल में दहेज का नाम
भी न था। महाशयो। कोई जानता ही न था कि दहेज या ठहरौनी किस चिड़िया का नाम
है । सत्य मानिए, कोई जानता ही न था कि ठहरौनो है क्या चीज़, पशु है या पक्षी,
आसमान में या जमीन में, खाने में या पौने में। बादशाही ज़माने में इस प्रथा को
बुनियाद पड़ी। हमारे युवक सेनाओं में सम्मिलित होने लगे, यह वीर लोग थे,
सेनाओं में जाना गर्व की बात समझते थे। माताएँ अपने दुलारों को अपने हाथ से
शस्त्रों से सजाकर रण-क्षेत्र में भेजती थीं। इस भांति युवकों की संख्या कम होने
लगी और लड़कों का मोल-तोल शुरू हुआ। आज यह नौबत आ गई है कि मेरो
इस तुच्छ, महातुच्छ सेवा पर पत्रों में टिप्पणियाँ हो रही हैं मानों मैंने कोई असा-
धारण काम किया है। मैं कहता हूँ, अगर आप संसार में जीवित रहना चाहते हैं
तो इस प्रथा का तुरन्त अन्त कीजिए।
एक महाशय ने शका को-क्या इसका अन्त किये बिना हम सब मर जायेंगे।
१-कर्तव्य । २-ऋदर।
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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/९१
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