पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१२८

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आगा-पीछा १२९ कलंक और बिरादरी का प्रश्न उनके मुंह पर मुहर लगाये हुए था । पन्द्रहवें दिन जब श्रद्धा दस बजे रात को अपने घर चली गई, तो चौधरी ने चौधरा- इन से कहा--लड़की तो साक्षात् लक्ष्मी है । चौधराइन--जब मेरी धोती छांटने लगती है, तो मैं मारे लाज के कट जाती हूँ। हमारी तरह तो इसकी लौडी होगी। चौधरी--फिर क्या सलाह देती हो---अपनी बिरादरी में तो ऐसी सुघर लड़की मिलने की नहीं। चौधराइन-राम का नाम लेकर व्याह करो। बहुत होगा रोटी पड़ जायगी । पांच बीसी में तो रोटी होती है, कौन छप्पन टके लगते हैं। पहले हमें सका होती थी कि पतुरिया की लड़की, न-जाने कैसी हो, कैसी न हो; पर अब सारी सका मिट गई। चौधरी --जब बाते करती है, तो मालूम होता है, मुंह से फूल झडते हैं। चौधराइन--मैं तो उसकी मा को बखानती हूँ, जिसकी कोख से ऐसी लच्छमी जनमी। चौधरी--कल चलो कोकिला से मिलकर सब ठीक-ठाक कर आये। चौधराइन---मुझे तो उसके घर जाते शरम लगती है। वह रानी बनी बैठी होगी, मैं तो उसकी लौडी मालूम होऊँगी। चौधरी--तो फिर पाउडर मॅगाकर मुंह मे पोत लो--गोरी हो जाअोगी। इसपेक्टर साहब की मेम भी तो रोज पाउडर लगाती थीं। रग तो सांवला था; पर जब पाउडर लगा लेती, तो मुँह चमकने लगता था। चौधराइन--हॅसी करोगे तो गाली दूंगी हा । काली कमली पर कोई रंग चढता है, जो पाउडर चढ जायगा ? तुम तो सचमुच उसके चौकीदार से लगोगे चौवरी-तो कल मुंहॲधेरे चल दें। अगर कहीं श्रद्धा आ गई, तो फिर गला न छोड़ेगी । बच्चा से कह देंगे कि पडित से सायत-मिती सब ठीक कर लो। फिर हँसकर कहा-उन्हें तो आप ही जल्दी होगी। चौधराइन भी पुराने दिन याद करके मुस्कराने लगी।